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१५. [प्र. १ ] दुक्खी भंते ! नेरइए दुक्खेणं फुडे ? अदुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे ?
[उ. ] गोयमा ! दुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे, नो अदुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे। [ २ ] एवं दंडओ जाव वेमाणियाणं। [ ३ ] एवं पंच दंडगा नेयव्वा-दुक्खी दुक्खेणं फुडे १ दुक्खी दुक्खं परियायइ २ दुक्खी दुक्खं उदीरेइ ३ दुक्खी दुक्खं वेदेइ ४ दुक्खी दुक्खं निजरेइ ५।
१५. [प्र. १ ] भगवन् ! क्या दुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है या अदुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है?
[उ. ] गौतम ! दुःखी नैरयिक ही दुःख से स्पृष्ट होता है, अदुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट नहीं होता। [२ ] इसी तरह वैमानिक पर्यन्त चौबीस ही दण्डकों में कहना चाहिए। [ ३ ] इसी प्रकार के पाँच दण्डक (आलापक) कहने चाहिए, यथा-(१) दुःखी दुःख से स्पृष्ट होता है, (२) दुःखी दुःख का परिग्रहण करता है, (३) दुःखी दुःख की उदीरणा करता है, (४) दुःखी दुःख का वेदन करता है, और (५) दुःखी दुःख की निर्जरा करता है।
15. (Q.) Bhante ! Is a miserable infernal being touched (bound or overwhelmed) by misery ? Or a non-miserable infernal beings touched (bound or overwhelmed) by misery?
[Ans.] Gautam ! Only a miserable infernal being is touched (bound or overwhelmed) by misery and not a non-miserable one. [2] The same should be repeated for all twenty four Dandaks (places of suffering) including Vaimanik. [3] In the same way five statements should be mentioned-(1) The miserable is touched (sprisht) by misery. (2) The miserable acquires (parigrahan) misery. (3) The miserable fructifies (udirana) misery. (4) The miserable suffers (vedan) misery. (5) The miserable sheds (nirjara) misery. अनगार को साम्परायिकी क्रिया SAMPARAYIKI KRIYA OF ANASCETIC
१६. [प्र. १ ] अणगारस्स णं भंते ! अणाउत्तं गच्छमाणस्स वा, चिट्ठमाणस्स वा, निसीयमाणस्स वा, तुयट्टमाणस्स वा; अणाउत्तं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पादपुंछणं गेण्हमाणस्स वा, निक्खिवमाणस्स वा, तस्स णं भंते ! किं इरियावहिया किरिया कज्जइ ? संपराइया किरिया कज्जइ ?
[उ. ] गोयमा ! नो ईरियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ।
१६. [प्र. १ ] भगवन् ! उपयोगरहित गमन करते हुए, खड़े होते (ठहरते) हुए, बैठते हुए, या सोते हुए और इसी प्रकार बिना उपयोग के वस्त्र, पात्र, कम्बल और पादपोंछन (प्रमार्जनिका या रजोहरण) ग्रहण करते (उठाते) हुए या रखते हुए अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है अथवा साम्परायिकी क्रिया लगती है ?
सप्तम शतक : प्रथम उद्देशक
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Seventh Shatak: First Lesson
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