________________
5555555555555555555555555555555555
leave the bottom and come to the surface of water again ? (Gautam-) Yes, Bhagavan ! It returns to the surface. (Bhagavan--) Gautam ! In the same way on becoming free of karmic association (nihsangata) and attachment (niraagata), a karma-free soul moves upward due to its natural movement orientation (gati parinaam).
[प्र. २ ] कहं णं भंते ! बंधणछेदणत्ताए अकम्मस्स गती पण्णत्ता ?
[उ.] गोयमा ! से जहानामए कलसिंबलिया इ वा, मुग्गसिंबलिया इ वा, माससिंबलिया इ वा, सिंबलिसिंबलिया इ वा, एरंडमिंजिया इ वा उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी फुडित्ताणं एगंतमंतं गच्छइ एवं खलु गोयमा !०।
[प्र. २ ] भगवन् ! बन्धन का छेद हो जाने से अकर्म (कर्ममुक्त) जीव की गति कैसे होती है ? _[उ. ] गौतम ! जैसे कोई मटर की फली, मूंग की फली, उड़द की फली, सेम की फली और एरण्ड के फल (बीज) को धूप में रखकर सुखाए तो सूख जाने पर वह फटता है और उसमें का बीज उछलकर दूर जा गिरता है, हे गौतम ! इसी प्रकार कर्मरूप बन्धन का छेद हो जाने पर कर्मरहित जीव की गति होती है।
[Q. 2] Bhante ! How does a karma-free soul move on destruction of bondage ? ___ [Ans.] Gautam ! When a pod of pea, green gram, Urad and beans or Erand fruit is put in sun to dry, it bursts and the seed is thrown out at a distance. In the same way when the bondage of karma is destroyed a karma-free soul move away.
[प्र. ३ ] कहं णं भंते ! निरिंधणयाए अकम्मस्स गती० ?
[उ. ] गोयमा ! से जहानामए धूमस्स इंधणविप्पमुक्कस्स उडे वीससाए निव्वाघाएणं गती पवत्तति एवं खलु गोयमा !०।
[प्र. ३ ] भगवन् ! ईंधनरहित होने (निरिन्धनता) से कर्मरहित जीव की गति किस प्रकार होती है?
[उ. ] गौतम ! जैसे-ईंधन से छूटे हुए धुएँ की गति किसी प्रकार की रुकावट न हो तो स्वाभाविक रूप से ऊपर की ओर होती है, इसी प्रकार, हे गौतम ! कर्मरूप ईंधन से रहित होने से कर्मरहित जीव की गति (ऊपर की ओर) होती है।
13. (Q.3] Bhante ! How does a karma-free soul move in absence of fuel of karmas (nirindhanata) ?
[Ans.] Gautam ! When smoke emanating from a (burning) fuel naturally moves upwards in absence of any obstruction. In the same way, भगवती सूत्र (२)
(336)
Bhagavati Sutra (2) क
) ) )))))))))) )))) )
卐
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org