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छठा शतक : दशम उद्देशक
SIXTH SHATAK (Chapter Six): TENTH LESSON
अन्यतीर्थी ANYATIRTHI (HERETICS)
सुख-दुःख का प्रदर्शन सम्भव नहीं DISPLAY OF PLEASURE AND PAIN
१. [ प्र. १ ] अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति - जावइया रायगिहे नयरे जीवा एवइयाणं जीवाणं नो चक्किया केइ सुहं वा दुहं वा जाव कोलट्ठिगमायमवि निष्फावमायमवि कलममायमवि मासमायमवि मुग्गमायमवि जूयामायमवि लिक्खामायमवि अभिनिवट्टेत्ता उवदंसित्तए, से कहमेयं भंते ! एवं ?
[ उ. ] गोयमा ! जं णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि, सव्वलोए वि य णं सव्वजीवाणं णो चक्किया केइ सुहं वा तं चैव जाव
उवदंसित्तए ।
१. [ प्र. १ ] भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि - 'राजगृह नगर में जितने जीव हैं, उन सबके दुःख या सुख को कोलास्थिक (बेर की गुठली ) जितना भी, बाल(निष्पाव नामक धान्य) जितना भी कलाय ( ग्वार के दाने या काली दाल अथवा मटर या चावल ) जितना भी, उड़द के जितना भी, मूँग - प्रमाण, यूका (जूं) प्रमाण, लिक्षा ( लीख ) प्रमाण भी बाहर निकालकर नहीं दिखा सकता। भगवन् ! यह बात यों कैसे हो सकती है ?
[उ.] गौतम ! जो अन्यतीर्थिक उपर्युक्त प्रकार से कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। हे गौतम! मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि (केवल राजगृह नगर में ही नहीं) सम्पूर्ण लोक में रहे हुए सर्व जीवों के सुख या दुःख को कोई भी पुरुष उपर्युक्तरूप से यावत् किसी भी प्रमाण में बाहर निकालकर नहीं दिखा सकता।
1. [Q. 1] Bhante ! People of other faiths (anyatirthik) or heretics say (akhyanti)... and so on up to ... propagate (prarupayanti) that —- It is not possible to bring out and display (physically) the misery and happiness of all the living beings in Rajagriha city even to the extant matching the size of a berry seed (Kolasthik), grain of Baal (a type of corn), pea, rice, Udad (a pulse), Moong (green gram), a louse (joon), or even a nit (leekh). 5 Bhante ! How is it so?
[Ans.] Gautam ! What the heretics say (akhyanti )... and so on up to ... propagate (prarupayanti) is not true. Gautam ! I say (@khyanti )... and so on up to... propagate (prarupayanti) that it is not possible for any person
to bring out and display (physically) the misery and happiness of all the
छटा शतक : दशम उद्देशक
Sixth Shatak: Tenth Lesson
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