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4. 11. The same should be repeated for yellow matter... and so on up to... 4 4 white matter.
१२. एवं एताए परिवाडीए गंध-रस-फास० कक्खडफासपोग्गलं मउयफासपोग्गलत्ताए।
एवं दो दो गरुय-लहुय २, सीय-उसिण २, गिद्ध-लुक्ख २, वण्णाइ सम्बत्थ परिणामेइ। * आलावगा य दो दो-पोग्गले अपरियाइत्ता, परियाइत्ता।
१२. इसी प्रकार इस क्रम (परिपाटी) के अनुसार गन्ध, रस और स्पर्श के विषय में भी समझना # चाहिए। यथा-(यावत) कर्कश स्पर्श वाले पुद्गल को मुद (कोमल) स्पर्श वाले (पदगल में परिणत करने । ऊ में समर्थ है।)
इसी प्रकार दो-दो विरुद्ध गुणों को अर्थात् गुरु और लघु, शीत और उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष, वर्ण ॐ आदि को वह सर्वत्र परिणमाता है। परिणमाता है' इस क्रिया के साथ यहाँ इस प्रकार दो-दो आलापक है कहने चाहिए; यथा-(१) पुद्गलों को ग्रहण करके परिणमाता है, (२) पुद्गलों को ग्रहण किये बिना ॐ नहीं परिणमाता।
12. The same pattern is applicable to matter with properties of smell, taste and touch in this order... and so on up to... capable of transforming matter with hard touch into matter with soft touch.
In the same way he is capable of transforming matter with pairs of si opposite qualities—heavy-light, cold-hot, smooth-rough, etc. (one into the other). With this act of transformation two statements should be added(1) transforms by acquiring matter particles, and (2) does not transform without acquiring matter particles.
विवेचन : सूत्र २ से १२ तक का निष्कर्ष-महर्द्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव देवलोक में रहे हुए पुद्गलों
को ग्रहण करके उत्तरवैक्रियरूप बना सकता (विकुर्वणा करता) है और फिर दूसरे स्थान में जाता है, किन्तु के इहगत अर्थात् प्रश्नकार के समीपस्थ क्षेत्र में रहे हुए पुद्गलों को तथा अन्यत्रगत-प्रज्ञापक के क्षेत्र और देव के 5 स्थान से भिन्न क्षेत्र में रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा नहीं कर सकता।
उक्त सूत्रानुसार पाँच वर्ण के १०, दो गंध का एक, पाँच रस के १० तथा आठ स्पर्श के चार विकल्प करने के पर कुल २५ भंग (विकल्प) होते हैं। विस्तार के लिए देखें, भगवती सूत्र भाग २ पृ. ९५ आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर)
Elaboration-A god with great opulence... and so on up to... great influence is capable of self-mutation (vikurvana) into a secondary transmutated body by acquiring matter particles from the divine realm. He then goes to other places. But he is not capable of performing selfmutation by acquiring matter particles from here (place where the question has been raised) or elsewhere (other than his own divine realm).
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| भगवती सूत्र (२)
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Bhagavati Sutra (2)
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