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एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक जाति रूप कर्म-जाति नाम है। उसके साथ प्रतिसमय अनुभव में आने योग्य है 卐 कर्मपुद्गलों की रचना को 'जातिनामनिधत्तायु' कहते हैं। इसी प्रकार गति आदि को समझना चाहिए।
निधत्त (निषिक्त)-कर्म के उदय में आने की एक स्वाभाविक व्यवस्था है। निधत्त (निषिक्त) सब कर्मपुद्गल + ॐ एक साथ उदय में नहीं आते, किन्तु उनकी एक क्रमिक श्रेणी बन जाती है, विपाक में आने वाले पुद्गलों के म निषेक (श्रेणी) बन जाते हैं। प्रतिसमय उदय में आने वाले कर्मपुद्गलों की विशिष्ट रचना होती है जिसे 'निषेक'
कहा जाता है। विपाक की पूर्ववर्ती अवस्था में निषेक की द्रव्य राशि अधिक होती है, उत्तर अवस्था में वह कम होती जाती है। कर्म की स्थिति की समाप्ति के क्षण तक निषेक व्यवस्था सक्रिय रहती है।
नामकर्म से विशेषित १२ दण्डकों की व्याख्या-(१) जातिनाम-निधत्त-जिन जीवों ने जातिनाम निषिक्त (निश्चित बाँधा है) किया है वे जीव 'जातिनामनिधत्त' कहलाते हैं। (२) जातिनामनिधत्तायु-जिन जीवों ने
जातिनाम के साथ आयुष्य को निधत्त किया है, उन्हें 'जातिनामनिधत्तायु' कहते हैं। (३) जातिनामनियुक्त-जिन 卐 जीवों ने जातिनाम को नियुक्त (सम्बन्ध-निकाचित) किया है अथवा वेदन प्रारम्भ किया है, वे। (४) E जातिनामनियुक्त-आयु-जिन जीवों ने जातिनाम के साथ आयुष्य नियुक्त किया है अथवा उसका वेदन प्रारम्भ
किया है। इसी प्रकार गतिनाम, स्थितिनाम, अवगाहनानाम, प्रदेशनाम और अनुभागनाम के सभी पदों का अर्थ भी जान लेना चाहिए। (५) जातिगोत्रनिधत्त-जिन जीवों ने एकेन्द्रियादिरूप जाति तथा गोत्र-एकेन्द्रियादि जाति के योग्य नीचगोत्रादि को निधत्त किया है। (६) जातिगोत्रनिधत्तायु-जिन जीवों ने जाति और गोत्र के साथ
आयुष्य को निधत्त किया है। (७) जातिगोत्रनियुक्त-जिन जीवों ने जाति और गोत्र को नियुक्त किया है। (८) ऊ जातिगोत्रनियुक्तायु-जिन जीवों ने जाति और गोत्र के साथ आयुष्य को नियुक्त कर लिया है। (९)
+जातिनाम-गोत्र-निधत्त-जिन जीवों ने जाति, नाम और गोत्र को निधत्त किया है। इसी प्रकार दूसरे पदों का 4 अर्थ भी जान लें। (१०) जाति-नाम-गोत्रनिधत्तायु-जिन जीवों ने जाति, नाम और गोत्र के साथ आयुष्य को
निधत्त कर लिया है। (११) जाति-नाम-गोत्र-नियुक्त-जिन जीवों ने जाति, नाम और गोत्र को नियुक्त किया है। (१२) जाति-नाम-गोत्र-नियुक्तायु-जिन जीवों ने जाति, नाम और गोत्र के साथ आयुष्य को नियुक्त किया है। इसी तरह अन्य सभी पदों का अर्थ भी समझ लेना चाहिए। (वृत्ति, पत्रांक २८०-२८१ एवं हिन्दी विवेचन, भा.
२, पृ. १०५३ से १०५६ तक) ___Elaboration-These eight aphorisms (27-34) discuss six kinds of lifespan bondage of beings and twelve statements about various levels of
bondage including Jati-naam-gotra-niyukt-ayu (race-status programme 卐 activated life-span).
Six kinds of bondage-Of the eight karmas fifth is Ayushya or lifespan determining karma. The particles of this karma impart the life force. The bondage of life-span of next birth is concluded during this birth. With this life-span bondage six other species of karmas (karma
prakritis) are also bound. (1) Jati-naam-karma-this karma determines + the race (one-sensed to five-sensed beings) during the next birth.
(2) Gati-naam-karma-it determines the genus (infernal to divine) during the next birth. (3) Sthiti-naam-karma-it determines the
乐乐555555555555555555555听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听
छठा शतक : अष्टम उद्देशक
(301)
Sixth Shatak: Eighth Lesson
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