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ॐ ५. जातिगोत्रनिधत्त हैं ? ६. जातिगोत्रनिधत्तायु हैं ? ७. जातिगोत्रनियुक्त हैं ? ८. जातिगोत्रनियुक्तायु हैं ? + ९. जातिनामगोत्रनिधत्त हैं ? १०. जातिनामगोत्रनिधत्तायु हैं ? भगवन् ! ११. जातिनामगोत्रनियुक्त हैं ? १२. क्या जातिनामगोत्रनियुक्तायु हैं ? यावत् अनुभागनामगोत्रनियुक्तायु हैं ?
[उ. ] गौतम ! जीव, जातिनामगोत्रनिधत्त भी हैं, यावत् अनुभागनामगोत्रनियुक्तायु भी हैं। ज ३४. यह दण्डक यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिए।
33. [Q.] This way these twelve kinds (dandaks) should be statedBhante ! Are beings with-1. Jati-naam-nidhatt (race programming)? 2. Jati-naam-nidhatt-ayu (race programmed life-span) ? 3. Jati-naamniyukt (race programme activation) ? 4. Jati-naam-niyukt-ayu (race programme activated life-span) ? 5. Jati-gotra-nidhatt (race-status programming) ? 6. Jati-gotra-nidhatt-ayu (race-status programmed lifespan)? 7. Jati-gotra-niyukt (race-status programme activation)? 8. Jatigotra-niyukt-ayu (race-status programme activated life-span) ? 9. Jatinaam-gotra-nidhatt (race-form-status programming) ? 10. Jati-naamgotra-nidhatt-ayu (race-form-status programmed life-span) ? 11. Jatinaam-gotra-niyukt (race-form-status programme activation) ? 12. Are they with Jati-naam-gotra-niyukt-ayu (race-form-status programme activated life-span) ?... and so on up to... Anubhag-naam-gotra-niyuktayu (potency-race-status programme activated life-span).
(Ans.) Gautam ! Beings are with Jati-naam-gotra-niyukt-ayu (racestatus programme activated life-span) ?... and so on up to... Anubhagnaam-gotra-niyukt-ayu (potency-race-status programme activated life
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卐 span).
एम)
+ 34. Repeat these for all Dandaks (places of suffering) up to Vaimaniks.
विवेचन : प्रस्तुत आठ सूत्रों (सूत्र २७ से ३४ तक) में जीवों के आयुष्यबन्ध के ६ प्रकार, तथा चौबीस ही दण्डक के जीवों में जातिनामनिधत्तादि बारह दण्डकों--आलापकों की प्ररूपणा की गई है।
षड्विध आयुष्यबन्ध की व्याख्या-आठ कर्मों में पाँचवाँ कर्म है आयुष्य ! इसके पुद्गलों से जीवनी शक्ति का निर्माण होता है। अगले जन्म के आयुष्य का बन्ध वर्तमान जीवन काल में ही हो जाता है। आयुष्य बन्ध के समय
छह अन्य कर्मप्रकृतियों का भी बन्ध होता है। जैसे-(१) जातिनामकर्म-इससे अगले जन्म में एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय 卐 तक की जाति का निर्धारण होता है, (२) गतिनामकर्म-इससे नरकगति से देवगति तक चार गतियों का, (३)
स्थितिनामकर्म-इससे जीवन की कालावधि का, (४) अवगाहनानामकर्म-इससे औदारिक-वैक्रिय आदि शरीर ; का, (५) प्रदेशनामकर्म-इससे आयुष्य कर्म के पुद्गलों का परिमाण, तथा (६) अनुभागनामकर्म-आयुष्य कर्म के ॐ पुद्गलों का विपाक निर्धारित होता है। जाति, गति नाम, के साथ ही इन छहों प्रकृतियों का बंध होता है। .
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जब
| भगवती सूत्र (२)
(300)
Bhagavati Sutra (2)
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