________________
网纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷555555555555纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷卐区 卐
卐
फफफफफफफ
5
18. The same should be repeated for loud thundering sound (of 5 clouds).
१९. [प्र.] अत्थि णं भंते ! बादरे पुढविकाए, बादरे अगणिकाए ?
[उ. ] नो इणट्टे समट्ठे, नऽन्नत्थ विग्गहगतिसमावन्नएणं ।
२०. [ प्र. ] अत्थि णं भंते ! चंदिम० ?
[ उ. ] णो इणट्ठे समट्ठे ।
२१. [ प्र.] अत्थि णं भंते ! गामाइ वा० ?
[उ. ] णो इणट्टे समट्ठे ।
२२. [प्र.] अस्थि णं भंते ! चंदाभा ति वा २ ?
[उ. ] गोयमा ! इणट्टे समट्ठे ।
२३. एवं सणंकुमार- माहिंदेसु, नवरं देवो एगो पकरेति ।
२४. एवं बंभलोए वि ।
२५. एवं बंभलोगस्स उवरिं सव्वहिं देवो पकरेति ।
4
4
१९. [ प्र. ] भगवन् ! क्या वहाँ (सौधर्म और ईशान देवलोक के नीचे) बादर पृथ्वीकाय और ५ बादर अग्निकाय है ?
Y
y
[ उ. ] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। यह निषेध विग्रहगति समापन जीवों के सिवाय दूसरे जीवों के 5 लिए जानना चाहिए।
4
५
२०. [ प्र.] भगवन् ! क्या वहाँ चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारारूप हैं ?
[उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
२१. [ प्र. ] भगवन् ! क्या वहाँ ग्राम यावत् सन्निवेश हैं ?
[उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
२२. [ प्र. ] भगवन् ! क्या यहाँ चन्द्राभा, सूर्याभा आदि हैं ?
[ उ. ] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
२३. इसी प्रकार सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोकों में भी कहना चाहिए। विशेष यह है कि वहाँ ( यह सब ) केवल देव ही करते हैं।
२४. इसी प्रकार ब्रह्मलोक (पंचम देवलोक ) में भी कहना चाहिए ।
२५. इसी तरह ब्रह्मलोक से ऊपर (पंच अनुत्तरविमान देवलोक तक ) सर्वस्थलों में पूर्वोक्त प्रकार से कहना चाहिए। इन सब स्थलों में केवल देव ही (पूर्वोक्त कार्य) करते हैं।
छठा शतक : अष्टम उद्देशक
****** h
( 295 )
Jain Education International
Sixth Shatak: Eighth Lesson
For Private & Personal Use Only
卐
फ्र
卐
फ्र
************************************
卐
www.jainelibrary.org