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छठा शतक: सप्तम उद्देशक SIXTH SHATAK (Chapter Six) : SEVENTH LESSON
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'शाली' SHAALI (PADDY) म धान्यों की योनि-स्थिति SPROUTING OF CORN
१. [प्र.] अह णं भंते ! सालीणं, वीहीणं, गोधूमाणं, जवाणं, जवजवाणं, एएसि णं धन्नाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं पिहियाणं मुद्दियाणं लंछियाणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठइ ?
गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तिण्णि संवच्छराई, तेण परं जोणी पमिलायइ, तेण परं जोणी पविद्धंसति, तेण परं बीए अबीए भवति, तेण परं जोणिवोच्छेदे पन्नत्ते समणाउसो!
१. [प्र. ] भगवन् ! शाली (कमल आदि श्रेष्ठ जाति का चावल), व्रीहि (सामान्य चावल), गोधूम म (गेहूँ), यव (जौ) तथा यवयव (विशिष्ट प्रकार का जौ = जई धान्य) इत्यादि धान्य कोठे में सुरक्षित रखे
हों, बाँस के पल्ले (छबड़े), मंच (मचान) पर रखे हों, माल में डालकर रखे हों, (बर्तन में डालकर)
गोबर से उनके मुख उल्लिप्त (विशेष प्रकार से लीपे हुए) हों, लिप्त हों, ढंके हुए हों, मिट्टी आदि से उन * बर्तनों के मुख मुद्रित हों, (उनके मुँह बन्द करके) लांछित (सील लगाकर चिन्हित) किये हुए हों; (इस ॐ प्रकार सुरक्षित किये हुए हों) तो उन (धान्यों) की योनि (अंकुरोत्पादक शक्ति) कितने काल तक रहती है?
[उ. ] हे गौतम ! उनकी योनि कम से कम अन्तर्मुहूर्त तक और अधिक से अधिक तीन वर्ष तक* रहती है। उसके पश्चात् उन (धान्यों) की योनि म्लान हो जाती है, विध्वंस को प्राप्त हो जाती है, फिर वह बीज, अबीज हो जाता है। इसके पश्चात् हे आयुष्मान् श्रमण ! उस योनि का विच्छेद हो जाता है।
1. (Q.) Bhante ! Say there are corns including shali (fine paddy), brihi (coarse paddy), godhoom (wheat), yav (barley) and yav-yav (special variety of barley, also called jayi) stored safely in a barn, a basket, a loft si after being filled in large containers covered and sealed after properly besmearing and plastering with clay and cow-dung. How long does the si sprouting capacity (yoni) of these secured corns remain intact?
[Ans.) Gautam ! The sprouting capacity of these remains intact for a minimum period of Antar-muhurt (less than 48 minutes) and a maximum period of three years. After that this capacity of these corns fades and gets destroyed to make that seed a non-seed. After that,Olong lived Shraman, that sprouting capacity ends.
| भगवती सूत्र (२)
(280)
Bhagavati Sutra (2)
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