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(Ans.) Gautam ! The life-span of gods in Lokantik Vimaans is eight Sagaropam (a metaphoric unit of time).
४३. [प्र. ] लोगंतियविमाणेहि णं भंते ! केवइयं अबाहाए लोगंते पण्णत्ते ? [उ.] गोयमा ! असंखेज्जाई जोयणसहस्साई अबाहाए लोगंते पण्णत्ते। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति.।
॥छ? सए : पंचमो उद्देसओ समत्तो । ४३. [प्र. ] भगवन् ! लोकान्तिक विमानों से लोकान्त कितना दूर है ? [उ.] गौतम ! लोकान्तिक विमानों से असंख्येय हजार योजन दूर लोकान्त है।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है;' इस प्रकार कहकर यावत् गौतम स्वामी विचरण करने लगे।
43. [Q.] Bhante ! How far is the edge of the universe from the Lokantik Vimaans ?
[Ans.] Gautam ! The edge of the universe is innumerable thousand Yojans away from the Lokantik Vimaans. ___“Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so. “With these words... and so on up to... ascetic Gautam resumed his activities.
विवेचन : सूत्र १ से १६ तक तमस्काय का वर्णन है, तथा १७ से ४३ तक कृष्णराजि का। दोनों में कुछ समानताएँ हैं, कुछ भिन्नताएँ हैं।
समानता निम्न हैं-(१) दोनों का वर्ण काला, भयजनक परम कृष्ण है। (२) दोनों में ही रिक्त स्थान हैं, वहाँ घर है. न ही ग्राम आदि। भिन्नताएँ-(१) दोनों का परिमाण तथा परिधि भिन्न-भिन्न है। (२) तमस्काय मुख्य रूप से अप्कायिक (जल) है, जबकि कृष्णराजि मुख्यतः पृथ्वीकायिक (पृथ्वी) है।
(३) तमस्काय में बादर पृथ्वीकाय, बादर अग्निकाय नहीं है। कृष्णराजि में बादर अप्काय, बादर अग्निकाय और बादर वनस्पतिकाय नहीं है।
लोकान्तिक देव ब्रह्मलोक नामक पंचम देवलोक के पास लोक के किनारे पर रहते हैं, इसलिए इन्हें लोकान्तिक कहते हैं। अथवा ये संसार रूप लोक के अन्त (करने में) करने में निकट हैं, क्योंकि ये सब स्वामी देव एकभवावतारी (एक भव के पश्चात् मोक्षगामी) होते हैं, इसलिए भी इन्हें लोकान्तिक कहते हैं।
इन विमानों का वर्ण लाल, पीला और श्वेत होता है, ये प्रकाशयुक्त, इष्ट वर्ण-गन्धयुक्त एवं सर्वरत्नमय होते हैं। इन विमानों के निवासी देव समचतुरस्र संस्थान वाले, पद्मलेश्यायुक्त एवं सम्यग्दृष्टि होते हैं। (जीवाभिगमसूत्र द्वितीय वैमानिक उद्देशक)
॥छठा शतक : पंचम उद्देशक समाप्त ।।
छठा शतक : पंचम उद्देशक
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Sixth Shatak: Fifth Lesson
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