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கழித்தழிழத***மிததததத*******************தல்
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दो, दाहिणेणं दो, उत्तरेणं दो । पुरत्थिमऽब्भंतरा कण्हराई दाहिणबाहिरं कण्हराई पुट्ठा, दाहिणऽन्तरा कण्हराई पच्चत्थिमबाहिरं कण्हराई पुट्ठा, पच्चत्थिमऽब्भंतरा कण्हराई उत्तरबाहिरं कण्हराई पुट्ठा, ५ उत्तरभंतरा कण्हराई पुरत्थिमबाहिरं कण्हराई पुट्ठा। दो पुरत्थिमपच्चत्थिमाओ बाहिराओ कण्हराईओ छलंसाओ, दो उत्तरदाहिणबाहिराओ कण्हराईओ तंसाओ, दो पुरत्थिमपच्चत्थिमाओ अब्भिंतराओ कण्हराई ओ चउरंसाओ, दो उत्तरदाहिणाओ अभिंतराओ कण्हराईओ चउरंसाओ ।
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पुव्वावरा छलंसा, तंसा पुण दाहिणुत्तरा बज्झा। अभंतर चउरंसा सव्वा वि य कण्हराई ओ ॥ १ ॥
१८. [ प्र. ] भगवन् ! ये आठ कृष्णराजियाँ कहाँ हैं ?
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[ उ. ] गौतम ! ऊपर सनत्कुमार (तृतीय) और माहेन्द्र (चतुर्थ) कल्पों (देवलोकों) पर और नीचे ५ ब्रह्मलोक (पंचम) देवलोक के अरिष्ट नामक विमान के (तृतीय) पाथड़े से नीचे, (अर्थात् ) इस स्थान में, अखाड़ा (प्रेक्षास्थल) के आकार की समचतुरस्र (सम चौरस) संस्थान - वाली आठ कृष्णराजियाँ हैं । यथा- पूर्व में दो, पश्चिम में दो, दक्षिण में दो और उत्तर में दो । पूर्वाभ्यन्तर अर्थात्-पूर्व दिशा की ५ 5 आभ्यन्तर कृष्णराजि दक्षिण दिशा की बाह्य कृष्णराजि से सटी हुई है। दक्षिण दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराज ने पश्चिम दिशा की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श किया हुआ है। पश्चिम दिशा की आभ्यन्तर ५ # कृष्णराज ने उत्तर दिशा की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श किया हुआ है, और उत्तर दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराज पूर्व दिशा की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श की हुई है। पूर्व और पश्चिम दिशा की दो बाह्य #कृष्णराजियाँ षडंश (षट्कोण) हैं, उत्तर और दक्षिण की दो बाह्य कृष्णराजियाँ त्र्यस्र (त्रिकोण) हैं; पूर्व 5 और पश्चिम की दो आभ्यन्तर कृष्णराजियाँ चतुरस्र (चतुष्कोण - चौकोन) हैं, इसी प्रकार उत्तर और दक्षिण की दो आभ्यन्तर कृष्णराजियाँ भी चतुष्कोण हैं।
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[ गाथार्थ - ] " पूर्व और पश्चिम की कृष्णराजि षट्कोण हैं, तथा दक्षिण और उत्तर की बाह्य कृष्णराज त्रिकोण हैं। शेष सभी आभ्यन्तर कृष्णराजियाँ चतुष्कोण हैं।" (स्पष्टता के लिए चित्र देखें) 18. [Q.] Bhante ! Where are these eight krishna-rajis ?
[Ans.] In the space above the Sanatkumar kalp (a divine dimension or the third heaven) and the Maahendra kalp (the fourth heaven) and below the celestial vehicle (vimaan) named Risht belonging to the F Brahmalok kalp (the fifth heaven) there are eight krishna-rajis Fresembling the shape (cross section) of a square wrestling arena two
in the east, two in the west, two in the south and two in the north. The inner krishna-raji of the east touches the outer krishna-raji of the south; the inner krishna-raji of the south touches the outer krishna-raji of the west; the inner krishna-raji of the west touches the outer krishna-raji of the north; and the inner krishna-raji of the north touches the outer krishna-raji of the east. The two outer krishna-rajis of east and west are छठा शतक : पंचम उद्देशक
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Sixth Shatak: Fifth Lesson
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