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[ २ ] मिच्छद्दिट्ठीहिं एगिंदियवज्जो तियभंगो।
[ ३ ] सम्मामिच्छद्दिट्ठीहिं छब्भंगा ।
११. [ १ ] सम्यग्दृष्टि जीवों में जीवादिक तीन भंग कहने चाहिए । विकलेन्द्रियों में छह भंग कहने चाहिए।
[ २ ] मिथ्यादृष्टि जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए ।
[ ३ ] सम्यग् - मिथ्यादृष्टि जीवों में छह भंग कहने चाहिए।
11. [1] For Samyagdrishti jivas (righteous beings) three alternatives, including jiva (in general) should be mentioned. For vikalendriyas (two to four sensed beings) six alternatives should be mentioned.
[2] For Mithyadrishti jivas (unrighteous beings), leaving aside onesensed beings, three alternatives should be mentioned.
[3] For Samyag-mithyadrishti jivas (righteous-unrighteous beings) six alternatives should be mentioned.
विवेचन : ६. दृष्टि द्वार - सम्यग्दृष्टि के दो दण्डकों में सम्यग्दर्शन प्राप्ति के प्रथम समय में अप्रदेशत्व है और बाद के द्वितीय - तृतीयादि समयों में सप्रदेशत्व है। इनमें दूसरे दण्डक में जीवादि पदों में पूर्वोक्त तीन भंग कहने चाहिए । विकलेन्द्रियों में पूर्वोत्पन्न और उत्पद्यमान एकादि सास्वादन सम्यग्दृष्टि जीव पाये जाते हैं, इस कारण
इनमें ६ भंग जानने चाहिए । एकेन्द्रिय सर्वथा मिध्यादृष्टि होते हैं, उनमें सम्यग्दर्शन न होने से सम्यग्दृष्टि द्वार में 5 एकेन्द्रिय पद का कथन नहीं करना चाहिए। मिथ्यादृष्टि के एकवचन और बहुवचन से दो दण्डक कहने चाहिए। उनमें से दूसरे दण्डक में जीवादि पदों के तीन भंग होते हैं; क्योंकि मिथ्यात्व - प्रतिपन्न ( प्राप्त ) जीव बहुत हैं और सम्यक्त्व से भ्रष्ट होने के बाद मिथ्यात्व को प्रतिपद्यमान एक जीव भी सम्भव है। मिथ्यादृष्टि के प्रकरण में एकेन्द्रिय जीवों में 'बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश', यह एक ही भंग पाया जाता है, क्योंकि एकेन्द्रिय जीवों में अवस्थित और उत्पद्यमान बहुत होते हैं। इस ( मिथ्यादृष्टि - ) प्रकरण में सिद्धों का कथन नहीं करना चाहिए- सम्यग् - मिथ्यादृष्टि जीवों के एकवचन और बहुवचन, ये दो दण्डक कहने चाहिए। उनमें से बहुवचन के दण्डक में ६ भंग होते हैं; क्योंकि सम्यग् - मिथ्यादृष्टित्व को प्राप्त और प्रतिपद्यमान एकादि जीव भी पाये जाते हैं। इस सम्यग् - मिथ्यादृष्टि द्वार में एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और सिद्ध जीवों का कथन नहीं करना चाहिए, क्योंकि उनमें सम्यग् मिथ्यादृष्टित्व असम्भव है।
Elaboration-(6) Drishti dvar-In the two categories of Samyagdrishti at the first moment of attaining righteousness it is apradesh state and after that it is sapradesh. For the second category aforesaid three alternatives should be stated for beings including jiva (in general). In vikalendriyas one or more sasvadan samyagdrishti jivas (one who had a fleeting taste of righteousness) already born or just born are available. For this reason six alternatives (bhang) should be mentioned for them. One-sensed beings are exclusively unrighteous, as such they are not
Sixth Shatak: Fourth Lesson
छठा शतक : चतुर्थ उद्देशक
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