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________________ 55555555555555555555558 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 ७. [१] जीव और एकेन्द्रियों को छोड़कर शेष सभी आहारक जीवों के लिए तीन भंग कहने चाहिए-यथा (१) सभी सप्रदेश, (२) बहुत सप्रदेश और एक अप्रदेश, तथा (३) बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश। [२] अनाहारक जीवों के लिए एकेन्द्रिय को छोड़कर छह भंग इस प्रकार होते हैं-यथा-(१) सभी सप्रदेश, (२) सभी अप्रदेश, (३) एक सप्रदेश और एक अप्रदेश, (४) एक सप्रदेश और बहुत अप्रदेश, (५) बहुत सप्रदेश और एक अप्रदेश, तथा (६) बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश। सिद्धों के लिए तीन भंग (सूत्र ४-१) कहने चाहिए। 7. [1] Leaving aside jiva (in general) and one-sensed beings, three alternative should be stated for all other ahaarak jivas (living beings with intake)-Relative to time (1) all beings are with sections, (2) many are with sections and one without sections, and (3) many are with sections and many are without sections. [2] For anahaarak jivas (living beings without intake) other than onesensed beings, there are six alternatives for all beings-(1) all beings are with sections (sapradesh), (2) all are without sections (apradesh), (3) one with sections and one without sections, (4) one with sections and many without sections, (5) many with sections and one without sections, and 卐 (6) many with sections and many without sections. With regard to Siddhas three alternatives should be stated (aphorism 4/1). विवेचन : २. आहारक द्वार-आहारक और अनाहारक दोनों प्रकार के जीवों के प्रत्येक के एकवचन और बहुवचन को लेकर क्रमशः एक-एक दण्डक यानी दो-दो दण्डक कहने चाहिए। जो जीव विग्रहगति में या . केवली समुद्घात में अनाहारक होकर फिर आहारकत्व को प्राप्त करता है, वह आहारक काल के प्रथम समय वाला जीव 'अप्रदेश' और प्रथम समय के अतिरिक्त द्वितीय-तृतीयादि समयवर्ती जीव 'सप्रदेश' कहलाता है। इसीलिए कदाचित् कोई सप्रदेश और कदाचित् कोई अप्रदेश कहा गया है-इसी प्रकार सभी आदि वाले (शुरू होने वाले) भावों में एकवचन में जान लेना चाहिए। अनादि वाले भावों में तो सभी नियमतः सप्रदेश होते , हैं। बहुवचन वाले दण्डक में भी इसी प्रकार-कदाचित् सप्रदेश भी और कदाचित् अप्रदेश भी होते हैं। जैसेआहारकपने में रहे हुए बहुत जीव होने से उनका सप्रदेशत्व है, तथा बहुत-से जीव विग्रहगति के पश्चात् प्रथम " समय में तुरन्त ही अनाहारक होने से उनका अप्रदेशत्व भी है। इस प्रकार आहारक जीवों में सप्रदेशत्व और, अप्रदेशत्व ये दोनों पाये जाते हैं। इसी प्रकार एकेन्द्रिय (पृथ्वीकायिक आदि) जीवों के लिए भी कहना चाहिए। सिद्ध अनाहारक होने से उनमें आहारकत्व नहीं होता है। अतः सिद्ध पद और एकेन्द्रिय को छोड़कर नैरयिकादि जीवों में मूल पाठोक्त तीन भंग-(१) सभी सप्रदेश, अथवा (२) बहुत सप्रदेश और एक अप्रदेश, अथवा (३) बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश कहने चाहिए। अनाहारक के भी इसी प्रकार एकवचन-बहुवचन को , लेकर दो दण्डक कहने चाहिए। ये जब अनाहारकत्व के प्रथम समय में होते हैं तो 'अप्रदेश' और द्वितीय-तृतीय आदि समय में होते हैं तो 'सप्रदेश' कहलाते हैं। बहुवचन के दण्डक में जीव और एकेन्द्रिय को नहीं लेना # चाहिए, क्योंकि इन दोनों पदों में 'बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश', यह एक ही भंग पाया जाता है; क्योंकि इन 5 | भगवती सूत्र (२) (224) Bhagavati Sutra (2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002903
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages654
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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