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छठा शतक : द्वितीय उद्देशक
SIXTH SHATAK (Chapter Six): SECOND LESSON
आहार के सम्बन्ध में कथन STATEMENT ABOUT INTAKE
१. रायगिहं नगरं जाव एवं वयासी- आहारुद्देसो जो पण्णवणाए सो सव्वो निरवसेसो नेयव्वो ।
सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ।
आहार AHAAR (INTAKE )
॥ छट्ठे सए : बीओ उद्देसो समत्तो ॥
१. राजगृह नगर में यावत् भगवान महावीर ने इस प्रकार फरमाया- यहाँ प्रज्ञापनासूत्र (२८वें आहारपद) प्रथम उद्देशक के अनुसार ग्यारह प्रश्न और उनके उत्तर जान लेना चाहिए।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'।
1. In Rajagriha city... and so on up to ... Bhagavan Mahavir said thus— Here the eleven questions and answers from the first lesson of the 28th chapter titled Ahaar-pad of Prajnapana Sutra should be quoted verbatim.
"Bhante! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words... and so on up to... ascetic Gautam resumed his activities.
विवेचन : प्रज्ञापनासूत्र के २८वें आहारपद के प्रथम उद्देशक में क्रमशः उक्त ११ अधिकारों में वर्णित विषय इस प्रकार हैं
१. पृथ्वीकाय आदि जीव जो आहार करते हैं, क्या वह सचित्त हैं, अचित्त हैं या मिश्र हैं ?
२. नैरयिक आदि जीव आहारार्थी हैं या नहीं ?
३. किन जीवों को कितने-कितने काल से, कितनी - कितनी बार आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है ?
४. कौन-से जीव किस प्रकार के पुद्गलों का आहार करते हैं ?
५. आहार करने वाला अपने समग्र शरीर द्वारा आहार करता है, या अन्य प्रकार से ?
६. आहार के लिए ग्रहीत पुद्गलों के कितने भाग का आहार किया जाता है ? इत्यादि ।
७. मुँह में खाने के लिए रखे हुए सभी पुद्गल खाये जाते हैं या कितने ही गिर जाते हैं । इसका स्पष्टीकरण ।
८. खायी हुई वस्तुएँ किस-किस रूप में परिणत होती हैं ?
९. एकेन्द्रियादि जीवों के शरीरों को खाने वाले जीवों से सम्बन्धित वर्णन ।
१०. रोमाहार से सम्बन्धित विवेचन |
११. मन द्वारा तृप्त हो जाने वाले मनोभक्षी देवों से सम्बन्धित तथ्यों का निरूपण ।
छठा शतक : द्वितीय उद्देशक
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Sixth Shatak: Second Lesson
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