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पंचम शतक : दशम उद्देशक
चम्पा - चन्द्रमा CHAMPA - CHANDRAMA (THE MOON IN CHAMPA)
FIFTH SHATAK (Chapter Five): TENTH LESSON
१. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी, जहा पढिमिल्लो उद्देसओ तहा णेयव्वो एसो वि, णवरं चंदिमा भाणियव्वा ।
॥ पंचमसए : दसमो उद्देसओ समत्तो ॥
१. उस काल और उस समय में चम्पा नाम की नगरी थी। जैसे (पंचम शतक का) प्रथम उद्देशक कहा है, उसी प्रकार यह उद्देशक भी कहना चाहिए। विशेषता यह है कि यहाँ 'चन्द्रमा' कहना चाहिए।
1. During that period of time there was a city named Champa. As has been stated in the first lesson (of the fifth chapter) so should be repeated here (verbatim). Only difference being the use of the word 'Chandrama'.
विवेचन : पंचम शतक के प्रथम उद्देशक में वर्णित सूर्य के उदय-अस्त सम्बन्धी वर्णन की भाँति यहाँ चन्द्रमा का उदय अस्त वर्णन कहना चाहिए।
भगवती सूत्र ( २ )
॥ पंचम शतक : दशम उद्देशक समाप्त ॥
॥ पंचम शतक सम्पूर्ण ॥
Elaboration-Here the description of ascent and descent of the moon should be stated like the description of dawning and setting of the sun mentioned in the first lesson of the fifth chapter.
● END OF THE TENTH LESSON OF THE FIFTH CHAPTER
END OF THE FIFTH CHAPTER ●
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Bhagavati Sutra (2)
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