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११८
१३१
स्त्री द्वार
१९७
१४१ १४६
२०१
२०७
विविध पुद्गलों का अन्तरकाल ११५ छठा शतक : तृतीय उद्देशक : महास्रव १८१-२१९ स्थानायु का अल्प-बहुत्व
संग्रहणी गाथाएँ
१८१ 卐 नैरयिक आरंभी और परिग्रही
१२०
प्रथम द्वार : महाकर्मा और अल्पकर्मा असुरकुमार आरंभी-परिग्रही
१२१
द्वितीय द्वार : वस्त्र और जीव के बेइन्द्रिय आदि आरंभी-परिग्रही
१२२
पुद्गलोपचय ओ हेतु-अहेतु
१२७
तृतीय द्वार : कर्मोपचय की सादि-सान्तता। पंचम शतक : अष्टम उद्देशक : निर्ग्रन्थ १३१-१५०
वस्त्र एवं जीवों की सादि-सान्तता ॐ निर्ग्रन्थीपुत्र और नारदपुत्र की चर्चा
चतुर्थ द्वार : अष्ट कर्मों की बन्धस्थिति
१९६ जीवों की वृद्धि हानि
१४०
संयत द्वार चौबीस दण्डकों की वृद्धि हानि और कालमान की प्ररूपणा
सम्यग्दृष्टि द्वार संज्ञी द्वार
१९९ जीवों में सोपचयादि चार भंग
भवसिद्धिक द्वार पंचम शतक : नवम उद्देशक : राजगह १५१-१६५
दर्शन द्वार पर्याप्तक द्वार
२०६ राजगृह का स्वरूप
१५१ उद्योत और अन्धकार
भाषक द्वार नैरयिकादि में समय ज्ञान
१५६
परित्त द्वार पार्वापत्य स्थविरों द्वारा पंचमहाव्रत
ज्ञान द्वार धर्म स्वीकार
१५९
योग द्वार उपसंहार रूप संग्रह गाथा
उपयोग द्वार
आहारक द्वार पंचम शतक : दशम उद्देशक :
सूक्ष्म द्वार चम्पा-चन्द्रमा
१६६-१६६
चरम द्वार
वेदक जीवों का अल्प-बहुत्व छठा शतक : प्रथम उद्देशक : वेदना १६७-१७८ संग्रहणी गाथा
१६७
छठा शतक : चतुर्थ उद्देशक : सप्रदेश २२०वेदना एवं निर्जरा के सम्बन्ध में दृष्टान्त १६७ प्रदेश द्वार : जीव-प्रदेश निरूपण करण की अपेक्षा साता-असाता-वेदन १७३ आहारक द्वार जीवों में वेदना और निर्जरा
१७७ भव्य द्वार उपसंहार रूप
१७८ संज्ञी द्वार
लेश्या द्वार छठा नक: द्वितीय उद्देशक: आहार १७९-१८०
दृष्टि द्वार आहार के सम्बन्ध में कथन
१७९ संयत द्वार
१५२
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