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जाते हैं। प्रत्येक शरीरी की अपेक्षा से परिमित रात-दिन उत्पन्न होते हैं और बीत जाते हैं। इस प्रकार उक्त दोनों कथन परस्पर विरोधी नहीं, अपितु सापेक्ष हैं।
असंख्येय प्रदेश वाले लोक में अनन्त रात-दिन तथा अनन्त जीवों का होना उक्त अपेक्षा से सम्भव है।
साधारण शरीरी अनन्त पर्याय का समूह रूप होने से तथा असंख्येय प्रदेशों का पिण्ड रूप होने से 'जीव घन' कहलाते हैं, प्रत्येक शरीर वाले भूत-भविष्य काल की संतति की अपेक्षा रहित होने से पूर्वोक्त रूप से 'परित जीव घन' कहलाते हैं।
चूँकि अनन्त और परित्त जीवों के सम्बन्ध से रात्रि - दिवसरूप कालविशेष भी अनन्त और परित्त कहलाता है, इसलिए अनन्त जीवरूप लोक के सम्बन्ध से रात्रि दिवस रूप कालविशेष भी अनन्त हो जाता है और परित्त जीवरूप लोक के सम्बन्ध से रात्रि - दिवस रूप कालविशेष भी परित्त हो जाता है। अतः इन दोनों में परस्पर विरोध नहीं है।
चातुर्याम एवं सप्रतिक्रमण पंचमहाव्रत धर्म-सर्वथा प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान और बहिद्धादान का त्याग चातुर्याम धर्म है, और सर्वथा प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह से विरमण पंचमहाव्रत धर्म है। बद्धादान में मैथुन और परिग्रह दोनों का समावेश हो जाता है। भरत और ऐरवत क्षेत्र के २४ तीर्थंकरों में से प्रथम और अन्तिम तीर्थंकरों के सिवाय बीच के २२ तीर्थंकरों के शासन में तथा महाविदेह क्षेत्र में चातुर्याम प्रतिक्रमणरहित (कारण होने पर प्रतिक्रमण) धर्म प्रवृत्त होता है, किन्तु प्रथम और अन्तिम तीर्थंकरों के शासन में सप्रतिक्रमण पंचमहाव्रत धर्म प्रवृत्त होता है । ( वृत्ति पत्रांक २४४)
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Elaboration—The questions – ( 1 ) The first question by followers of Bhagavan Parshva Naath means that in the universe having innumerable space-points how can infinite days and nights (time) exist? (2) The second question means that how can the number of days and nights be infinite and limited at the same time?
The explanation of the answers to the aforesaid questions is as follows-In this world there are two categories of living beings. (1) Sadharan Shariri (clustered life forms) having infinite souls or beings in a single body. (2) Pratyek Shariri (individual life forms) having one soul in one body. In the clustered state infinite beings are born and die within one body. With reference to these, infinite days dawn and pass away. With reference to individual life forms only limited number of days dawn and pass away. Thus the aforesaid two statements are not contradictory but relative.
Existence of infinite days-nights and infinite souls in the universe constituted of only innumerable space-points is not impossible in aforesaid context.
As the Sadharan Shariri beings are clusters of infinite modes and lumps of innumerable ultimate particles they are called jiva-ghan
Fifth Shatak: Ninth Lesson
पंचम शतक: नवम उद्देशक
(163)
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