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१५. [ १ ] तए णं ते थेरा भगवंतो समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं 5 वयासी - इच्छामि णं भंते ! तुब्भं अंतिए चाउज्जमाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सप्पडिक्कमणं धम्मं 5 उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ।
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[ २ ] 'अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह ।'
१५. [ १ ] इसके पश्चात् उन (पाश्र्र्वापत्य) स्थविर भगवन्तों ने श्रमण भगवान महावीर को
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5 वन्दन - नमस्कार किया । वन्दन - नमस्कार करके इस प्रकार बोले- 'भगवन् ! चातुर्याम धर्म के बदले हम आपके पास प्रतिक्रमण सहित पंचमहाव्रत रूप धर्म को स्वीकार करके विचरण करना चाहते हैं।'
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15. [1] Then those senior ascetics (followers of Bhagavan Parshva Naath) paid homage and obeisance to Shraman Bhagavan Mahavir. Doing that they submitted-Bhante! Instead of our four limbed religion (Chaturyam dharma) we want to embrace the religion of five great vows 5 (Panch Mahavrat) inclusive of Pratikraman (critical review ) under your 5 guidance, and move about.
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फ्र [2] Bhagavan—“Beloved of gods ! Do as you please and avoid languor when doing a good auspicious deed."
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[ २ ] भगवन्– 'देवानुप्रिय ! जिस प्रकार आपको सुख हो, वैसा करो, किन्तु प्रतिबन्ध (शुभ कार्य में ढील) मत करो।'
5 सव्वदुक्खप्पहीणा, अत्थेगइया देवा देवलोगेसु उववन्ना।
१६. तए णं ते पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो जाव चरिमेहिं उस्सासनिस्सासेहिं सिद्धा जाव
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उत्पन्न
साथ
१६. इसके पश्चात् वे पाश्र्वापत्य स्थविर भगवन्त... यावत् अन्तिम उच्छ्वास - निःश्वास सिद्ध हुए यावत् सर्वदुःखों से प्रहीण (मुक्त) हुए और उनमें से कई ( स्थविर) देवलोकों में देवरूप में
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हुए ।
16. In due course some of those senior ascetics (followers of Bhagavan Parshva Naath )... and so on up to ... breathed their last to become Siddhas... and so on up to ... terminated all misery. And many of them (ascetics) were born as gods in divine realms.
विवेचन : पाश्र्वापत्य स्थविरों के प्रश्नों का आशय - ( १ ) प्रथम प्रश्न का आशय यह है कि जो लोक असंख्यात प्रदेश वाला है, उसमें अनन्त रात्रि - दिवस (काल), कैसे हो या रह सकते हैं ? (२) दूसरे प्रश्न का आशय यह है 5 कि जब रात्रि - दिवस (काल) अनन्त हैं, तो परित्त कैसे हो सकते हैं ?
समाधान- उपर्युक्त दोनों प्रश्नों का समाधान इस प्रकार है-जगत् में जीव दो प्रकार के हैं, साधारण
5 शरीरी एक शरीर में अनन्त जीव, प्रत्येक शरीरी-एक शरीर में एक जीव । साधारण शरीरी की अवस्था में एक शरीर में अनन्त जीव उत्पन्न होते हैं मरते हैं। उनकी अपेक्षा से अनन्त रात-दिन उत्पन्न होते हैं और बीत 5
Bhagavati Sutra (2)
भगवती सूत्र ( २ )
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(162)
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