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६. तए णं से नारयपुत्ते अणगारे नियंठिपुत्तं अणगारं एवं क्यासिनो खलु वयं देवाणुप्पिया ! एयम जाणाओ-पासामो, जइ णं देवाणुप्पिया ! नो गिलायंति परिकहित्तए तं इच्छामि णं देवाणुप्पियाणं अंतिए एयम सोच्चा निसम्म जाणित्तए ।
६. [ जिज्ञासा ] तब नारदपुत्र अनगार ने निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार से इस प्रकार कहा - "हे देवानुप्रिय ! निश्चय ही हम इस अर्थ (तथ्य) को नहीं जानते-देखते (अर्थात् इस विषय का ज्ञान और दर्शन हमें नहीं है) । हे देवानुप्रिय ! यदि आपको इस अर्थ के परिकथन - ( स्पष्टीकरणपूर्वक कहने) में किसी प्रकार की ग्लानि, (ऊब या अप्रसन्नता) न हो तो मैं आप देवानुप्रिय से इस अर्थ को सुनकर, अवधारणापूर्वक जानना चाहता हूँ ।"
6. [Question] At this ascetic Narad-putra said to ascetic Nirgranthiputra-"O Beloved of gods! I certainly do not know or understand this matter. Beloved of gods! If it is not inconvenient to you, I would like to know and understand this matter from you."
७. तए णं से नियंठिपुत्ते अणगारे नारयपुत्तं अणगारं एवं क्यासी - दव्वादेसेण वि मे अज्जो सव्वपोग्गला सपदेसा वि अपदेसा वि अणंता । खेत्तादेसेण वि एवं चेव । कालादेसेण वि एवं चेव । भावादेसेण वि एवं चैव ।
जे दव्यओ अपदेसे से खेत्तओ नियमा अपदेसे, कालओ सिय सपदेसे सिय अपदेसे, भावओ सिय सपदेसे, सिय अपदेसे।
जे खेत्तओ अपदेसे से दव्यओ सिय सपदेसे सिय अपदेसे, कालओभयणाए, भावओ भयणाए । जहा खेत्तओ एवं कालओ, भावओ।
जे दव्यओ सपदेसे से खेत्तओ सिय सपदेसे सिय अपदेसे, एवं कालओ भावओ वि।
जे खेत्तओ सपदेसे से दव्वओ नियमा सपदेसे, कालओ भयणाए, भावओ भयणाए । जहा दव्वओ तहा कालओ भावओ वि।
७. [ समाधान ] इस पर निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार ने नारदपुत्र अनगार से इस प्रकार समाधान किया"हे आर्य ! मेरी धारणानुसार द्रव्यादेश से भी पुद्गल सप्रदेश भी हैं, अप्रदेश भी हैं और वे पुद्गल अनन्त हैं। क्षेत्रादेश से भी इसी तरह हैं और कालादेश से तथा भावादेश से भी वे इसी तरह हैं। 1
जो पुद्गल द्रव्यादेश से अप्रदेश हैं, क्षेत्रादेश से भी नियमतः (निश्चित रूप से) अप्रदेश हैं। कालादेश से उनमें से कोई सप्रदेश होते हैं, कोई अप्रदेश होते हैं और भावादेश से भी कोई सप्रदेश तथा कोई अप्रदेश होते हैं।
जो पुद्गल क्षेत्रादेश से अप्रदेश होते हैं, उनमें कोई द्रव्यादेश से सप्रदेश और कोई अप्रदेश होते हैं, कालादेश और भावादेश से इसी प्रकार की भजना (कोई संप्रदेश और कोई अप्रदेश) जानना चाहिए। जस प्रकार क्षेत्र (क्षेत्रादेश) से कहा, उसी प्रकार काल से और भाव से भी कहना चाहिए।
पंचम शतक : अष्टम उद्देशक
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Fifth Shatak: Eighth Lesson
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