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43. Ahetu (non-cause) is of five kinds-(1) does not know ahetu... and so on up to... (5) embraces death of a chhadmasth with ahetu.
44. Ahetu is of five kinds-(1) does not know through ahetu... and so on up to... (5) embraces death of a chhadmasth through ahetu.
"Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words... and so on up to... ascetic Gautam resumed his activities.
विवेचन : हेतु-अहेतु सूत्रों का रहस्य-प्रस्तुत आठ सूत्रों में से प्रारम्भ के चार सूत्र छद्मस्थ की अपेक्षा से और बाद के चार सूत्र केवली की अपेक्षा से कहे हैं। ‘हेतु' का अर्थ है साध्य की सिद्धि का निश्चित साधन। छग्रस्थ परोक्ष ज्ञानी है, अतः वह हेतु द्वारा जानता है। केवली प्रत्यक्ष ज्ञानी है, उन्हें हेतु की जरूरत नहीं है। पहले के चार सूत्रों में से पहला-दूसरा (३७-३८) सूत्र सम्यग्दृष्टि छद्मस्थ की अपेक्षा से और तीसरा-चौथा (३९-४०) सूत्र मिथ्यादृष्टि छद्मस्थ की अपेक्षा से है। इन दो-दो सूत्रों में अन्तर यह है कि प्रथम दो प्रकार के व्यक्ति छदमस्थ होने से साध्य का निश्चय करने के लिए हेतु को अथवा "हेतु' से सम्यक जानते हैं और सम्यग्दृष्टि छद्मस्थ का मरण हेतुपूर्वक या हेतु से समझकर होता है, अज्ञानमरण नहीं होता; जबकि आगे के दो सत्रों से मिथ्यादष्टि छदमस्थ हेत को सम्यकतया नहीं जानता-देखता, न ही सम्यक श्रद्धा करता है, न वह हेत का सम्यक प्रयोग करके वस्तुतत्त्व को प्राप्त करता है और मिथ्यादृष्टि छदमस्थ होने के नाते सम्यग्ज्ञान न होने से अज्ञानमरणपूर्वक मरता है। ___ आगे के चार सूत्रों में से दो सूत्रों में केवलज्ञानी की अपेक्षा से कहा गया है कि केवलज्ञानी प्रत्यक्षज्ञानी होने से उन्हें हेतु की अथवा हेतु द्वारा जानने (अनुमान करने की आवश्यकता नहीं रहती। केवलज्ञानी स्वयं 'अहेतु' (प्रत्यक्षद्रष्टा) कहलाते हैं। अतः अहेत से ही वे जानते-देखते हैं. अहेत प्रयोग से ही वे क्षायिक सम्यग्दष्टि होते हैं, इसलिए पूर्ण श्रद्धा करते हैं, वस्तुतत्त्व का निश्चय भी अहेतु से करते हैं और वे अहेतु से यानी बिना किसी उपक्रम-हेतु से नहीं मरते हैं कि, वे निरुपक्रमी होने से किसी भी निमित्त से मृत्यु नहीं पाते, इसलिए अहेतु केवलीमरण है उनका।
सातवाँ और आठवाँ सूत्र अवधिज्ञानी, मनःपर्यायज्ञानी छद्मस्थ की अपेक्षा से है-वे अहेतु व्यवहार करने वाले जीव सर्वथा अहेतु से नहीं जानते, अपितु कथंचित् जानते हैं, कथंचित् नहीं जानते-देखते। अध्यवसानादि (राग-द्वेष) उपक्रम कारण न होने से अहेतुमरण, किन्तु छद्मस्थमरण (केवलिमरण नहीं) होता है। अज्ञानमरण सहेतुक है, छद्मस्थमरण सहेतुक-अहेतुक दोनों प्रकार का हो सकता, केवलीमरण अहेतुक ही होता है। (वृत्ति पत्रांक २३५)
॥ पंचम शतक : सप्तम उद्देशक समाप्त ॥ Elaboration—Of the eight aforesaid aphorisms first four are in context of a chhadmasth (one who is short of omniscience due to residual karmic bondage) and last four are in context of a Kevali (omniscient). Hetu means causative phrase or statement that proves a point. Chhadmasth is a paroksh jnani (who perceives indirectly), therefore he sees and knows things through hetu (cause). Kevali is a pratyaksh jnani (who perceives directly), he is not dependent on hetu (cause). First two of the
पंचम शतक : सप्तम उद्देशक
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Fifth Shatak: Seventh Lesson
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