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卐 lohakatah (steel cauldron), kadachi (serving spoons) and other such
equipment. They also acquire mansions as well as gods-goddesses, men
women, male and female animals, asan (seat), shayan (bed), khambh ॐ (pillar), bhand (earthen pots and grocery), as well as living, non-living
and mixed things. Therefore, they are said to be equipped with the said
faculties and not without them. ॐ ३५. जहा तिरिक्खजोणिया तहा मणुस्सा वि भाणियब्वा।
३५. जिस प्रकार तिर्यञ्चपञ्चेन्द्रिय जीवों के (सारम्भ सपरिग्रह होने के) विषय में कहा, उसी 卐 प्रकार मनुष्यों के विषय में भी कहना चाहिए।
35. What has been stated (with regard to action and possession) about five-sensed animals (panchendriya tiryagyonik jivas) should be repeated
for human beings. ॐ ३६. वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया तहा नेयव्वा ।
३६. जिस प्रकार भवनवासी देवों के विषय में (सूत्र ३१) में कहा, वैसे ही वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के (आरम्भ-परिग्रहयुक्त होने के) विषय में कहना चाहिए।
36. What has been stated (with regard to action and possession) about 55 abode dwelling gods (aphorism 31) should be repeated for interstitial 4 (Vanavyantar), stellar (Jyotishk) and celestial-vehicular (Vaimanik) gods.
विवेचन : चौबीस दण्डकों के जीवों के आरम्भ-प्रस्तुत सात सूत्रों (सू. ३० से ३६ तक) में परिग्रहयुक्त होने 卐 की सहेतुक प्ररूपणा की गई है।
आरम्भ और परिग्रह का हेतु-स्थानांगसूत्र में तीन प्रकार का परिग्रह बताया है-शरीर, कर्म तथा उपधि ॐ (सचित्त-अचित्त पौद्गलिक द्रव्य)। सामान्य रूप में संसारी जीव परिग्रहयुक्त होते हैं। (यद्यपि एकेन्द्रिय आदि 卐 जीव आरम्भ करते व परिग्रहयुक्त होते दिखाई नहीं देते, तथापि जब तक जीव द्वारा मन-वचन-काय से-
स्वेच्छा से आरम्भ एवं परिग्रह का प्रत्याख्यान नहीं किया जाता, तब तक आरम्भ और परिग्रह का दोष लगता है
ही है, इस दृष्टि से उन्हें आरम्भ-परिग्रहयुक्त कहा गया है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय प्राणियों के भी म सिद्धान्तानुसार शरीर, कर्म एवं कुछ सम्बन्धित उपकरणों का परिग्रह होता है और उनके द्वारा अपने खाद्य,
शरीर रक्षा आदि कारणों से आरम्भ भी होता है। तिर्यंचपंचेन्द्रिय जीवों, मनुष्यों, नारकों तथा समस्त प्रकार के
देवों के द्वारा आरम्भ और परिग्रह में लिप्तता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। यद्यपि मनुष्यों में वीतराग पुरुष, केवली 卐 तथा निर्ग्रन्थ साधु-साध्वी आरम्भ-परिग्रह से मुक्त होते हैं, किन्तु यहाँ समग्र मनुष्य जाति की अपेक्षा से मनुष्य को सारम्भ-सपरिग्रह बताया गया है। (वृत्ति पत्रांक २३२)
Elaboration--Sinful activities of twenty four places of suffering (Dandak)-Aforesaid seven aphorisms (30-36) inform that living beings in all Dandaks indulge in sinful activities and possession.
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भगवती सूत्र (२)
(126)
Bhagavati Sutra (2)
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