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ultimate particles) it 'enters the great river Ganges against its flow and
gets destroyed'. In the same way it 'enters a whirlpool or a drop of water 3 and gets destroyed'. + विवेचन : छेदन-दो टुकड़े हो जाना। भेदन-विदारण हो या बीच में से चीरा जाना या खण्ड-खण्ड होना।
परमाणुपुद्गल से लेकर असंख्यप्रदेशी स्कन्ध तक सूक्ष्म परिणाम वाला होने से उसका छेदन-भेदन नहीं हो 卐 पाता। किन्तु अनन्तप्रदेशी स्कन्ध बादर परिणाम वाला होने से कदाचित् छेदन-भेदन को प्राप्त हो जाता है, 卐 कदाचित् नहीं। इसी प्रकार अग्निकाय में प्रवेश करने तथा जल जाने आदि सभी प्रश्नों के उत्तर के सम्बन्ध में
छेदन-भेदन आदि की तरह ही समझ लेना चाहिए। अर्थात् उत्तरों का स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए। म उक्त वर्णन का सारांश यह है कि एक प्रदेशी से असंख्यप्रदेशी स्कन्ध तक छिन्न-भिन्न नहीं होता,
अनन्तप्रदेशी स्कन्ध छिन्न-भिन्न होता भी है, और नहीं भी होता। __आधुनिक विज्ञान का पहले यह मत था कि परमाणु का विभाजन नहीं होता। किन्तु अब उसका विभाजन किया गया है। जैनदर्शन के अनुसार विज्ञानसम्मत अणु अनन्तप्रदेशी स्कन्ध है।
Elaboration-Chhedan means to break into two pieces. Bhedan means to tear apart or to break into many pieces. As paramanu-pudgal or ultimate particle of matter and its aggregates of up to innumerable numbers are extremely minute they cannot be divided into pieces. But the aggregates of infinite pradeshas (ultimate particles) are gross and thus sometimes divisible and sometimes not. The answers to questions regarding entering fire and water should be understood likewise.
The gist of the aforesaid description is that aggregates of one to innumerable ultimate particles are indivisible, whereas aggregates infinite ultimate particles are divisible as well as indivisible.
Modern science initially maintained that atom was indivisible but now it has been divided. According to Jain philosophy the atom of modern science is an aggregate of infinite paramanus. परमाणुपुद्गलादि के विभाग SECTIONS OF PARTICLES OF MATTER
९. [प्र. ] परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं सअड्ढे समझे सपदेसे ? उदाहु अणड्ढे अमज्झे अपदेसे ? [उ. ] गोयमा ! अणड्ढे अमझे अपदेसे, नो सअड्ढे नो समझे नो सपदेसे।
९. [प्र. ] भगवन् ! क्या परमाणुपुद्गल स-अर्ध-(बराबर आधा भाग) स-मध्य-(मध्य सहित) और स-प्रदेश-(प्रदेशयुक्त) है, अथवा अनर्द्ध-(अर्ध-भागरहित), अमध्य-(मध्य भागरहित) और
अप्रदेश-(प्रदेशरहित) हैं ? ॐ [उ. ] गौतम ! (परमाणुपुद्गल) अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश है, किन्तु स-अर्ध, समध्य और
सप्रदेश नहीं है।
| भगवती सूत्र (२)
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Bhagavati Sutra (2) 55555555555555555555555555
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