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अन्यतीर्थियों की मिथ्या प्ररूपणा FALSE HERETIC TENETS १३ . [ प्र. ] अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति - से जहानामए जुवई जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया एवामेव जाव चत्तारि पंच जोयणसयाई बहुसमाइणे यलो मस्सेहिं । से कहमेतं भंते ! एवं ?
गोमा ! जं णं ते अन्नउत्थिया जाव मणुस्सेहिं, जे ते एवमाहंसु मिच्छा. । अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव एवामेव चत्तारि पंच जोयणसताई बहुसमाइण्णे निरयलोए नेरइएहिं ।
१३. [ प्र. ] भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि जैसे कोई युवक अपने हाथ से युवती का हाथ पकड़े हुए हो, अथवा जैसे आरों से एकदम सटी हुई चक्र की नाभि हो, इसी प्रकार यावत् चार सौ पाँच सौ योजन तक यह मनुष्यलोक मनुष्यों से ठसाठस भरा हुआ है। भगवन् ! यह प्ररूपणा क्या ठीक है ?
[उ. ] हे गौतम ! अन्यतीर्थियों का यह कथन मिथ्या है। मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि चार सौ - पाँच सौ योजन तक नरकलोक, नैरयिक जीवों से ठसाठस भरा हुआ है।
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13. [Q.] Bhante ! People of other faiths (anyatirthik) or heretics say 5 (akhyanti)... and so on up to ... propagate (prarupayanti) that this land of humans is tightly packed with human beings... and so on up to... fourfive hundred Yojans just like a young man tightly holds the hand of a young woman or like the spokes of a wheel are tightly held by its axle. Bhante ! Is it so?
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[Ans.] Gautam ! This statement by heretics is wrong. I say
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5 (akhyanti)... and so on up to ... propagate (prarupayanti) that the infernal
world (narak) is tightly packed with infernal beings (nairayiks) up to
5 four-five hundred Yojans.
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१४. [ प्र. ] नेरइया णं भंते! किं एगत्तं पभू विउव्वित्तए ? पुहत्तं पभू विकुव्वित्तए ?
[उ.] जाव जीवाभिगमे आलावगो तहा नेयव्वो जाव दुरहियासं ।
१४. [ प्र. ] भगवन् ! क्या नैरयिक जीव, एकत्व (एकरूप) की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं, अथवा बहुत्व (बहुत से रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ?
[उ. ] गौतम ! इस विषय में जीवाभिगमसूत्र में जिस प्रकार आलापक कहा है, उसी प्रकार का आलापक यहाँ भी 'दुरहियासं' शब्द तक कहना चाहिए।
14. [Q.] Bhante ! Are the infernal beings capable of transmutation into one form (ekatva ) or many forms (bahutva ) ?
[Ans.] In this regard the statement from Jivabhigam Sutra should be repeated here up to the word durahiyasam (unbearable). भगवती
सूत्र ( २ )
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Bhagavati Sutra (2)
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