________________
फफफफफफफफफ
फ्र
卐
15 bodied beings), jiva (five sensed beings), and sattva ( immobile beings )...
and
so on up to... deprives them of their life. In that case in how many activities the person who shot that arrow is liable to be involved? [Ans.] Gautam ! When that arrow with its mass, with its weight and
卐
5
5
5 with its mass and weight is falling downwards... and so on up to... 5 deprives them of their life, then the person (who shot it) is touched by four activities including kaayiki (physical activity). The beings from whose bodies that bow has been made are also liable of involvement in four activities. The body of the bow is also liable of involvement in four activities. Also liable of involvement are the bow-string (jiva) or catgut
(nharu)
in four, arrow in five and (its components) rod (shar), feathers
(patra), blade or tip (phal) and catgut (nharu), each in five. The beings afflicted by the falling arrow are also touched by five activities including kaayiki.
5
卐
विवेचन प्रस्तुत तीन सूत्रों (सूत्र १० से १२ तक) धनुष चलाने वाले व्यक्ति को तथा धनुष के विविध उपकरण (अवयव) जिन-जिन जीवों के शरीरों से बने हैं उनको बाण छूटते समय तथा बाण के नीचे गिरते 5 समय होने वाली प्राणिहिंसा से लगने वाली क्रियाओं का निरूपण है।
एक व्यक्ति धनुष हाथ में लेकर बाण फेंकता है और उससे अनेक जीवों का उत्पीड़न व घात करता है - इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में उसे प्राणातिपातिकी आदि पाँचों क्रियाएँ लगती हैं तथा उस धनुष में प्रयुक्त बाण, डोरी आदि उपकरण
जिन जीवों के शरीर से बने हैं उन जीवों को भी पाँचों क्रियाएँ लगती हैं, यह विषय प्रश्न योग्य है, फ्र क्योंकि उन जीवों का शरीर तो जड़ है, जीव कहीं अन्यत्र अन्य शरीर धारण कर चुका है, फिर उस जड़ शरीर से उसे प्राणातिपातिकी आदि क्रियाएँ कैसे लगेंगी ? यदि जड़ शरीर से ही क्रियाएँ लगती हैं, तो सिद्धों के त्यक्त 5 शरीर से उन्हें भी क्रियाएँ लगनी चाहिए ?
इस प्रश्न का समाधान इस प्रकार दिया गया है कि उन जीवों ने मरते समय तक हिंसा आदि से विरति (निवृत्ति) नहीं की थी, हिंसा का त्याग नहीं करने से अविरति के परिणाम से युक्त थे, इस कारण उन्हें पाँचों क्रियाएँ लगती हैं। सिद्धों को क्रियाएँ इसलिए नहीं लगतीं, चूँकि उन्होंने कर्मबंध के हेतुभूत अविरति परिणाम का सर्वथा त्याग कर दिया था।
प्रश्न उठता है, फिर तो साधु को रजोहरणादि उपकरणों से जीव दया आदि होने पर उनके भूतपूर्व जीवों को पुण्यबंध भी होना चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं होता, क्यों ? उत्तर है, पुण्यबन्ध तभी होता है, जब क्रिया में विवेक और शुभ अध्यवसाय संलग्न हो । जड़ शरीर में विवेक आदि नहीं होते। इसलिए उन्हें पुण्य का बंध भी नहीं होता । इसके अतिरिक्त अपने भारीपन आदि के कारण जब बाण नीचे गिरता है, तब जिन जीवों के शरीर से वह बाण बना है, उन्हें पाँचों क्रियाएँ लगती हैं, क्योंकि बाणादि रूप बने हुए जीवों के शरीर तो उस समय मुख्यतया जीवहिंसा में प्रवृत्त होते हैं। जबकि धनुष की डोरी, धनुः पृष्ट आदि साक्षात् वधक्रिया में प्रवृत्त न होकर केवल बनते हैं, इसलिए उन्हें चार क्रियाएं लगती हैं। वृत्तिकार ने इस विषय को श्रद्धागम्य बताया है।
निमित्तमात्र (वृत्ति पत्रांक २३०)
भगवती सूत्र (२)
(90)
Jain Education International
फफफफफफफफफफफ
Bhagavati Sutra (2)
For Private & Personal Use Only
फफफफफफफफफफफफफफफफफ
www.jainelibrary.org