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आयुष्य AYUSHYA (LIFE-SPAN)
अल्पायु और दीर्घायु के कारण CAUSES OF SHORT AND LONG LIFE-SPAN
१. [ प्र. ] कण्णं भंते ! जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ?
पंचम शतक : छठा उद्देशक FIFTH SHATAK (Chapter Five): SIXTH LESSON
[उ.] गोयमा ! तिहिं ठाणेहिं, तं जहा-पाणे अइवाएत्ता मुसं वइत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अणेसणिज्जेणं असण- पाण- खाइम - साइमेणं पडिलाभेत्ता, एवं खलु जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ।
२. [ प्र.] कणं भंते! जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ?
[उ.] गोयमा ! तिहिं ठाणेहिं-नो पाणे अइवाइत्ता, नो मुसं वइत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा फास - एसणिज्जेणं असण - पाण- खाइम - साइमेणं पडिलाभेत्ता, एवं खलु जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ।
१. [ प्र. ] भगवन् ! जीव अल्पायु रूप फल देने वाले कर्म किस कारण से बाँधते हैं ?
[उ.] गौतम ! तीन कारणों से जीव अल्पायु रूप फल देने वाले कर्म बाँधते हैं - ( 9 ) प्राणियों की हिंसा करके, (२) असत्य भाषण करके, और (३) तथारूप श्रमण या माहन को अप्रासुक, अनेषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम - (रूप चतुर्विध आहार) देकर । इस प्रकार (तीन कारणों से) जीव अल्पायुष्क फल वाला कर्म बाँधते हैं।
२. [ प्र. ] भगवन् ! जीव दीर्घायु के कारणभूत कर्म कैसे बाँधते हैं ?
[उ.] गौतम ! तीन कारणों से जीव दीर्घायु के कारणभूत कर्म बाँधते हैं - (१) प्राणातिपात न करने से, (२) असत्य न बोलने से, और (३) तथारूप श्रमण और माहन को प्रासुक और एषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम - (रूप चतुर्विध आहार) देने से । इस प्रकार (तीन कारणों) से जीव दीर्घायुष्क (कारणभूत) कर्म का बन्ध करते हैं।
1. [Q.] Bhante ! How do living beings (jivas) acquire the bondage of karmas determining a short life-span ?
[Ans.] Gautam ! They do so for three reasons – ( 1 ) by harming or killing living beings, (2) by false speech and ( 3 ) by giving prohibited and unsuitable food of four kinds, namely staple food, liquids, general food, and savoury food (ashan, paan, khadya, svadya ), to ascetics conforming to the description in Agams (tatharupa Shramans and Mahans). That is पंचम शतक : छठा उद्देशक
Fifth Shatak: Sixth Lesson
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