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but those infernal beings (nairayik) who do not suffer pain according to acquired karmas (but in some different way) are said to be suffering anevambhoot pain.
४. एवं जाव वेमाणिया। संसारमंडलं नेयव्वं ।
४. इसी प्रकार यावत् वैमानिक-(दण्डक) पर्यन्त संसारमण्डल (संसारी जीवों के समूह) के विषय में जानना चाहिए।
4. The same is true for all beings of the world (samsar mandal) up to Vaimaniks.
विवेचन : एवंभूतवेदन और अनेवंभूतवेदन का रहस्य-जिन प्राणियों ने जिस प्रकार से कर्म बाँधे हैं, उन कर्मों के उदय आने पर वे उसी प्रकार से असाता आदि वेदना भोग लेते हैं, उनका वह वेदन एवंभूतवेदना वेदन है, किन्तु जो प्राणी जिस प्रकार से कर्म बाँधते हैं, उसी प्रकार से उनके फलस्वरूप वेदना नहीं वेदते, उनका वह वेदन-अनेवंभूतवेदना वेदन है। जैसे-कई व्यक्ति दीर्घकाल में भोगने योग्य आयुष्य आदि कर्मों की उदीरणा करके अल्पकाल में ही भोग लेते हैं, उनका वह वेदन अनेवंभूतवेदना वेदन कहलायेगा। अन्यथा, अपमृत्यु (अकालमृत्यु) का अथवा युद्ध आदि में लाखों मनुष्यों का एक साथ एक ही समय में मरण कैसे संगत होगा !
आगमोक्त सिद्धान्त के अनुसार जिन जीवों के जिन कर्मों का स्थितिघात, रसघात, प्रकृतिसंक्रमण आदि हो जाते हैं, वे अनेवंभूतवेदना वेदते हैं, किन्तु जिन जीवों के स्थितिघात, रसघात आदि नहीं होते, वे एवंभूतवेदना वेदते हैं। (वृत्ति पत्रांक २२५)
Elaboration-Explanation about evambhoot and anevambhootThose living beings who suffer pain according to acquired karmas (pleasure or pain giving) are said to be suffering evambhoot pain. Those beings who do not suffer pain according to acquired karmas but in some different way are said to be suffering anevambhoot pain. For example, if some person fructifies the long life-span determining and other karmas prematurely and experiences them in a reduced period, such sufferance is called anevambhoot sufferance. As otherwise there could be no explanation for untimely deaths or deaths of hundreds of individuals at the same time in a war.
According to the doctrine mentioned in the Agams the living beings who undergo change or reduction in duration and intensity of karmas as
1 as transformation of the species of karmas experience anevambhoot sufferance. Those beings who do not undergo such change or transformation experience evambhoot sufferance. (Vritti, leaf 225) अवसर्पिणी में हुए कुलकर आदि KULAKARS OF THE AVASARPINI
५. [प्र. ] जंबुद्दीवे णं भंते ! इह भारहे वासे इमीसे उस्सप्पिणीए समाए कइ कुलगरा होत्था ?
पंचम शतक : पंचम उद्देशक
(77)
Fifth Shatak : Fifth Lesson 步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步
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