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he gained during the last birth remained fixed in his memory and resurfaced during this birth. असंवुड-संवुड की सिद्धता LIBERATION OF SAMVRIT AND ASAMVRIT
११. [प्र. १ ] असंवुडे णं भंते ! अणगारे किं सिज्झति, बुज्झति, मुच्चति, परिनिव्वाति, सबदुक्खाणमंतं करेति ?
[उ. ] गोयमा ! नो इणटे समढे। [प्र. ] से केणटेणं जाव नो अंतं करेइ ?
[उ.] गोयमा ! असंवुडे अणगारे आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबंधणबद्धाओ. घणिसबंधणबद्धाओ पकरेति, हस्सकालद्वितीयाओ दीहकालद्वितीयाओ पकरेति, मंदाणुभागाओ तिव्वाणुभागाओ पकरेति, अप्पपदेसग्गाओ बहुप्पदेसग्गाओ पकरेति, आउगं च णं कम्मं सिय बंधति, सिय नो बंधति, अस्सातावेदणिज्जं च णं कम्मं भुज्जो भुज्जो उवचिणाति, अणादीयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं संसारकंतारं अणुपरियट्टइ। से तेणटेणं गोयमा ! असंवुडे अणगारे नो सिज्झति जाव णो अंतं करेइ।
११. [प्र. १ ] भगवन् ! क्या असंवृत अनगार सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, निर्वाण प्राप्त करता है तथा समस्त दुःखों का अन्त करता है ?
[उ. ] गौतम ! ऐसा सम्भव नहीं है। [प्र. ] भगवन् ! वह किस कारण से सिद्ध नहीं होता, यावत् सब दुःखों का अन्त नहीं करता?
[उ.] गौतम ! असंवृत अनगार आयुकर्म को छोड़कर शेष शिथिलबन्धन से बद्ध सात कर्मप्रकृतियों को गाढ़बन्ध से बद्ध करता है; अल्पकालीन स्थिति वाली कर्मप्रकृतियों को दीर्घकालिक स्थिति वाली करता है; मन्द अनुभाग वाली प्रकृतियों को तीव्र अनुभाग वाली करता है; अल्पप्रदेश वाली प्रकृतियों को बहुतप्रदेश वाली करता है और आयुकर्म को कदाचित् बाँधता है एवं कदाचित् नहीं बाँधता; असातावेदनीय कर्म का बार-बार उपार्जन करता है; तथा अनादि अनवदग्र-अनन्त, दीर्घमार्ग वाले, चतुर्गति वाले, संसाररूपी अरण्य में बार-बार परिभ्रमण करता है। गौतम ! इस कारण से है असंवृत अनगार सिद्ध नहीं होता, यावत् समस्त दुःखों का अन्त नहीं करता।
11. (Q. 1] Bhante ! Does an ascetic who has not blocked the inflow of karmas (asamurit) get perfected (Siddha), enlightened (buddha), liberated (mukta), freed of cyclic rebirth (parinivrit), and end all miseries?
[Ans.] Gautam ! That is not possible.
[Q.] Bhante ! What is the reason that he does not get perfected (Siddha), ... and so on up to... end all miseries?
(Ans.) Gautam ! Besides ayu-karma (life-span determining karma) an asamurit ascetic transforms karmas of seven species from those having
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| प्रथम शतक: प्रथम उद्देशक
(43)
First Shatak : First Lesson
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ध
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