________________
5555555555555555555555555555555555555555555555
a [उ. ] गौतम ! अविरति की अपेक्षा से, अविरति होने के कारण नैरयिक जीव आत्मारम्भी, परारम्भी और उभयारम्भी कहे जाते हैं. किन्त अनारम्भी नहीं।
[२ से २० ] इसी प्रकार असुरकुमार देवों के विषय में भी जान लेना चाहिए, यावत् ॐ तिर्यञ्चपञ्चेन्द्रिय तक का भी (आलापक) इसी प्रकार कहना चाहिए।
[२१ से २४ ] मनुष्यों में भी सामान्य जीवों की तरह जान लें। विशेष यह है कि सिद्धों का कथन छोड़कर। वाणव्यन्तर देवों से वैमानिक देवों तक नैरयिकों की तरह कहना चाहिए।
8.[Q. 1] Bhante ! Are infernal beings atmaarambhi (those who inflict harm to beings themselves), paraarambhi (those who inflict harm to 4 beings through others), tadubhyaarambhi (those who inflict harm both ways) or anaarambhi (those who are free of harmful intent)?
(Ans.] Gautam ! Infernal beings cause harm themselves, through others, as well as both ways but they are not free of harmful intent.
(Q.) Bhante ! Why do you say that?
[Ans.) In context of non-restraint (avirati), the infernal beings, as they are devoid of any restraint, are said to cause harm themselves, through others, as well as both ways but they are not free of harmful intent.
[2 to 20) Same is true for Asur Kumar gods... and so on up to... 15 Tiryanch Panchendriya (five-sensed animals).
[21 to 24] The information about ordinary living beings also applies to human beings except for that stated about Siddhas. The information about infernal beings also applies to divine beings from Vanavyantar gods to Vaimanik gods. सलेश्य जीवों में आरंभ प्ररूपणा SINFUL ACTIVITY OF BEINGS IN CONTEXT OF LESHYA
९. [१] सलेसा जहा ओहिया (सु. ७)। [२] किण्हलेस-नीललेस-काउलेसा जहा ओहिया में जीवा, नवरं पमत्त-अप्पमत्ता न भाणियवा। तेउलेसा पम्हलेसा सुक्कलेसा जहा ओहिया जीवा (सु. ७), नवरं सिद्धा न भाणियव्वा।
९. [१] लेश्या वाले जीवों के विषय में सामान्य (औधिक) जीवों की तरह कहना चाहिए। [२] कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाले जीवों के सम्बन्ध में सामान्य जीवों की भाँति ही सब कथन समझना चाहिए; किन्तु इतना विशेष है कि (सामान्य जीवों के आलापक में उक्त) प्रमत्त और
अप्रमत्त यहाँ नहीं कहना चाहिए। तेजोलेश्या वाले, पद्मलेश्या वाले और शुक्ललेश्या वाले जीवों के के विषय में भी औधिक जीवों की तरह कहना चाहिए; किन्तु इतना विशेष है कि सामान्य जीवों में से 5
सिद्धों के विषय का कथन यहाँ नहीं करना चाहिए।
8听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听F FF FFFFF 55 5555 $$ $$$$
भगवतीसूत्र (१)
(40)
Bhagavati Sutra (1) | 85955555555555555555555555555555555558
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org