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[उ. ] हाँ, गौतम ! ( वह उस जनपदवर्ग को) जानता
-देखता है।
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9. [Q.] Bhante ! Can a righteous (samyagdrishti) and amaayi (free of the influence of passions) sagacious ascetic (bhaavitatma anagar) create y by transmutation a janapad-varg (a state-like vast inhabited area) between Varanasi city and Rajagriha city with the help of his potency (virya labdhi), power of transmutation (vaikriya labdhi) and power of extra-sensory knowledge (Avadhi-jnana labdhi) and then see and 5 know it ?
[Ans.] Yes, Gautam ! He (the ascetic) sees and knows that (the vast inhabited area created by transmutation).
१०. [ प्र. १ ] से भंते! किं तहाभावं जाणइ पासइ ? अनहाभावं जाणइ पासइ ?
[उ. ] गोयमा ! तहाभावं जाणइ पासइ, णो अन्नहाभावं जाणइ पासइ ।
[प्र. २ ] से केणट्टेणं ?
[उ. ] गोयमा ! तस्स णं एवं भवति - नो खलु एस रायगिहे नगरे, णो खलु एस वाणारसी नगरी,
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खलु एस अंतरा एगे जणवयवग्गे । एस खलु ममं वीरियलद्धी वेउव्वियलद्धी ओहिणाणली इड्डी जुती
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जसे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए। से से दंसणे अविवच्चासे भवति, से ट्टे गोयमा ! एवं बुच्चति - तहाभावं जाणति पासति, नो अन्नहाभावं जाणति पासति ।
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१०. [ प्र. १ ] भगवन् ! क्या वह उस जनपदवर्ग को तथाभाव से जानता और देखता है, अथवा ५ अन्यथाभाव से जानता-देखता है ?
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[उ. ] गौतम ! वह उस जनपदवर्ग को तथाभाव से जानता और देखता है, परन्तु अन्यथाभाव से ५ नहीं जानता देखता ।
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[प्र. २ ] भगवन् ! इसका कारण क्या है ?
[ उ. ] गौतम ! उस अमायी सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार के मन में ऐसा विचार चिन्तन होता है कि ( वास्तव में) न तो यह राजगृह नगर है और न यह वाराणसी नगरी है, तथा न इन दोनों के बीच ५ में यह एक बड़ा जनपदवर्ग है, किन्तु यह मेरी ही वीर्यलब्धि है, वैक्रियलब्धि है और अवधिज्ञानलब्धि है; तथा यह मेरे द्वारा उपलब्ध, प्राप्त एवं अभिमुखसमागत ( विपाक में आये) ऋद्धि, द्युति, यश, बल, ५ वीर्य और पुरुषकार - पराक्रम है। उसका वह दर्शन अविपरीत- यथार्थ ग्राही होता है। इसी कारण से, हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि वह अमायी सम्यग्दृष्टि अनगार तथाभाव से जानता देखता है, किन्तु 4 अन्यथाभाव से नहीं जानता- देखता ।
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10. [Q. 1] Bhante ! Does he see and know that janapad varg 4 5 realistically (tatha - bhaava) or unrealistically (anyatha-bhaava ) ?
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भगवतीसूत्र (९)
Bhagavati Sutra (1)
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