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वह जाता है अपनी लब्धि, अपनी क्रिया या अपने प्रयोग से । (३) अश्वादि का रूप बनाया हुआ वह अनगार अश्व आदि नहीं होता, वह वास्तव में अनगार ही होता है।
अभियोग और वैक्रिय में अन्तर - वैक्रिय रूप वैक्रिय लब्धि या वैक्रिय समुद्घात द्वारा किया जाता है-जबकि अभियोग किया जाता है-विद्या, मंत्र, तंत्र आदि के बल से । अभियोग में मंत्रादि के बल से अश्वादि के रूप में प्रवेश करके उसके द्वारा क्रिया कराई जाती है। दोनों के द्वारा रूप-परिवर्तन या विविध रूप निर्माण में समानता दिखलाई देती है, परन्तु दोनों की प्रक्रिया में अन्तर है। अभियोग भी एक प्रकार की विक्रिया ही है। दोनों के कर्त्ता मायी (प्रमादी एवं कषायवान्) साधु होते हैं। उत्तरा. २६/२६२ में अभियोगिकी भावना का वर्णन द्रष्टव्य है।
Elaboration-The gist of the preceding three aphorisms is as follows
(1) Even with the help of his special powers a sagacious ascetic (bhaavitatma anagar) cannot acquire (abhiyojan) other forms, like that of a horse, without accepting matter particles from outside. (2) After acquiring such forms he can travel long distances but that is done with his own special powers, action and effort. ( 3 ) That ascetic in the form of a horse is not a horse, he is actually an ascetic.
Difference between abhiyoga and vaikriya-Vaikriya (transmuted) form is acquired through the process of Vaikriya Samudghat, whereas abhiyoga is done with the help of special powers, mantra and tantra. Abhiyoga is a process where one enters the form or body of a horse etc. and performs actions through it. The two activities appear to be similar in terms of change of form or creating a variety of forms. However, the processes are different. Abhiyoga (acquisition of a form) too is a type of vikriya (transmutation). Both these actions are performed by maligned ascetics who are under influence of stupor or passions. The description of Abhiyogiki Bhaavana (sentiment of pursuing transformation) in Uttaradhyayan Sutra (26/262 ) is worth a study.
विकुर्वणा का फल FRUITS OF TRANSMUTATION
१५. [ प्र. १ ] से भंते ! किं मायी विकुव्वति ? अमायी विकुव्वति ?
[उ.] गोयमा ! मायी विकुव्वति, नो अमायी विकुव्वति ।
१५. [ प्र. १ ] भगवन् ! क्या मायी अनगार विकुर्वणा करता है, या अमायी अनगार विकुर्वणा करता है ?
[ उ. ] गौतम ! मायी अनगार विकुर्वणा करता है, अमायी अनगार विकुर्वणा नहीं करता ।
15. [Q. 1] Bhante ! Does a maligned (maayi; this includes spiritually torpid and passion-infested) person perform transmutation (vikurvana ) ?
भगवतीसूत्र (१)
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Bhagavati Sutra (1)
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