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चित्र परिचय - १२
एक बार गणधर मंडितपुत्र के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान ने बताया
(१) जैसे कोई जलती अग्नि की लपटों पर सूखे घास का पूला डाले, तो क्या वह घास शीघ्र ही जल जाती है ? (२) जैसे तपे हुए लोहे के गर्म तवे पर पानी की कुछ बूँदें डालें तो क्या वे बूँदे शीघ्र ही नष्ट हो जाती है ? मण्डित पुत्र - हाँ हो जाती है।
(३) प्रभु ने कहा - इसी प्रकार इन्द्रियों को संयत रखने वाला, आरम्भ समारम्भ त्यागी संयमी को उसे जो भी कर्मबन्ध होता है, वह अल्पकालीन होता है, वह अपने शुभ निर्मल ध्यान से उन कर्मों की शीघ्र ही निर्जरा कर देता है । जैसे अग्नि में सूखा ईंधन जलकर भस्म हो जाता है।
Illustration No. 12
संवृत (संयत) आत्मा की निर्जरा-प्रक्रिया
(४) प्रभु ने पुनः कर्मास्रव तथा कर्मनिर्जरा की प्रक्रिया समझाते हुए कहा-जैसे एक सरोवर में छिद्रों वाली कोई नौका उतार दें तो उस नौका में छिद्रों द्वारा पानी भर जाता है। तथा नौका डूबने लगती है।
(५) यदि कोई उस नौका के छिद्र बन्द कर दे, तथा नौका में भरे जल को उलीच उलीच कर बाहर फेंक दें तो नौकाजलरहित होकर पुनः तैरने लग जाती है ।
(६) मण्डित पुत्र ! इसी प्रकार तप-संयम पूर्वक जीवन यात्रा करता हुआ संयत आत्मा को जो भी कर्मास्रव होता है, वह शीघ्र ही उनकी निर्जरा करके कर्म मुक्त हो जाता है।
- शतक ३, उ. ३, सूत्र १४
PROCESS OF SHEDDING KARMAS BY A RESTRAINED SOUL Once Bhagavan said in answer to Ganadhar Manditputra's question(1) For example a man throws a bundle of hay in fire. Does it not burn at once ? (2) For example a man pours a drop of water on a red hot pan. Does it not evaporate at once?
Mandit-putra—Yes, It does.
(3) Bhagavan said-In the same way the karmic bondage of an ascetic who has restrained his sense organs and abandoned all sinful activities is short lived. With the help of his pious and sublime meditation he soon sheds the karmas as dry wood burns to ashes in fire.
(4) Explaining the process of inflow and shedding of karmas Bhagavan added-For example a large boat with holes is placed in a pond, water seeps in and it starts sinking.
(5) Some person plugs all the wholes and bails out all the water. Now the boat again becomes free of water and floats.
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(6) Mandit-putra ! In the same way an ascetic who has restrained himself soon sheds whatever karmas he has acquired and gets liberated of all karmic bondage.
--Shatak 3, lesson 3, Sutra 14
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