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________________ 9555555555555555555555555555555558 ש ת ת ת ת ת ת נ ת ת ת hhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh (Ans.] Yes, Mandit-putra ! A living being (jiva) trembles always every moment... and so on up to... accordingly changes its state (bhaava). १२. [प्र. १ ] जावं च णं भंते ! से जीवे सया समितं जाव परिणमति तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया भवति ? [उ. ] णो इणठे समझे। [प्र. २ ] से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जावं च णं से जीवे सदा समितं जाव अंते अंतकिरिया । न भवति ? [उ. ] मंडियपुत्ता ! जावं च णं से जीवे सया समितं जाव परिणमति तावं च णं से जीवे आरभति । सारभति समारभति, आरंभे वदृति, सारंभे वदृति, समारंभे वट्टति, आरभमाणे सारभमाणे समारभमाणे, में आरंभे वट्टमाणे, सारंभे वट्टमाणे, समारंभे वट्टमाणे बहूणं पाणाणं भूताणं जीवाणं सत्ताणं दुक्खावणयाए , सोयावणयाए जूरावणयाए तिप्पावणयाए पिट्टावणयाए परितावणयाए वट्टति, से तेणटेणं मंडियपुत्ता ! एवं बुच्चति-जावं च णं से जीवे सया समितं एयति जाव परिणमति तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया ॥ न भवति। १२. [प्र. १ ] भगवन् ! जब तक जीव समित रूप से काँपता है, यावत् उन-उन भावों में परिणत ॥ होता है, तब तक क्या उस जीव की अन्तिम-(मरण) समय की अन्तक्रिया (मुक्ति) होती है? [उ. ] मण्डितपुत्र ! यह अर्थ समर्थ नहीं है; (क्योंकि जीव जब तक क्रियायुक्त है, तब तक , अन्तक्रिया (मुक्ति) नहीं हो सकती।) [प्र. २ ] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जब तक जीव समितरूप से सदा काँपता है, यावत् तब तक उसकी अन्तिम समय की अन्तक्रिया नहीं होती? [उ. ] हे मण्डितपुत्र ! जीव जब तक सदा समितरूप से काँपता है, यावत् उन-उन भावों में , परिणत होता है, तब तक वह (जीव) आरम्भ (हिंसा की प्रवत्ति) करता है. संरम्भ (हिंसा का संकल्प) में करता है, समारम्भ (परिताप देना) करता है; आरम्भ में रहता है, संरम्भ में रहता है, और समारम्भ में रहता है। आरम्भ, संरम्भ और समारम्भ करता हुआ तथा आरम्भ में, संरम्भ में और समारम्भ में प्रवर्त्तमान जीव, बहुत-से प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को दुःख पहुँचाने में, शोक देने में, झूराने(विलाप कराने में, रुलाने अथवा आँसू गिरवाने में), पिटवाने में, या त्रास पहुँचाने में और परिताप देने में प्रवृत्त होता है। इसलिए हे मण्डितपुत्र ! इसी कारण से ऐसा कहा जाता है कि जब तक जीव सदा समितरूप से कम्पित होता है, यावत् उन-उन भावों में परिणत होता है, तब तक वह जीव, अन्तिम समय (मरणकाल) में अन्तक्रिया नहीं कर सकता। ____12. [Q. 1] Bhante ! When a living being (jiva) trembles always every moment... and so on up to... accordingly changes its state (bhaava), then fi at the last moment (of his life) does he undergo ant-kriya (the activity; last action or ending cycles of death)? | तृतीय शतक : तृतीय उद्देशक (447) Third Shatak: Third Lesson ऊऊऊ5555555555555555555555558 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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