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फैंके हुए पुद्गल को पकड़ने की देवशक्ति THE DIVINE POWER TO RETRIEVE THROWN MAR
३३. [ प्र. १ ] भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं महावीरं वंदइ नमंसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी
देवे णं भंते ! महिड्डीए महज्जुतीए जाव महाणुभागे पुव्यामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अणुपरियट्टित्ताणं 5 गिहित्तए ?
[उ. ] हंता, पभू।
[प्र. २ ] से केणट्टेणं भंते ! जाव गिण्हित्तए ?
[ उ. ] गोयमा ! पोग्गले णं खित्ते समाणे पुव्वामेव सिग्घगति भवित्ता ततो पच्छा मंदगती भवति, देवे जं पुव्विं पिय पच्छा वि सीहे सीहगती चेव, तुरिते तुरितगती चेव । से तेणट्टेणं जाव पभू गेण्हित्तए । ३३. [ प्र. १ ] 'भगवन्' ! यों कहकर भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन - नमस्कार करके इस प्रकार पूछा- 'भगवन् ! महाऋद्धि-सम्पन्न, महाद्युतियुक्त यावत् महाप्रभावशाली देव क्या पहले पुद्गल फैंककर, फिर उसके पीछे जाकर उसे पकड़ लेने में समर्थ है ?'
[उ. ] हाँ, गौतम ! वह समर्थ है।
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[प्र. २ ] भगवन् ! किस कारण से देव, पहले फैंके हुए पुद्गल को, उसका पीछा करके ग्रहण करने में समर्थ है ?
[ उ. ] गौतम ! जब पुद्गल फैंका जाता है, तब पहले उसकी गति तीव्र होती है, पश्चात् उसकी गति मन्द हो जाती है, जबकि महर्द्धिक देव तो पहले भी और पीछे भी शीघ्र और शीघ्र गति वाला तथा त्वरित और त्वरित गति वाला होता है। इसी कारण से देव, फैंके हुए पुद्गल का पीछा करके उसे पकड़ सकता है।
33. [Q. 1] “Bhante !” Addressing thus, Bhagavan Gautam Swami paid homage and obeisance to Shraman Bhagavan Mahavir and askedBhante! Are gods endowed with great divine opulence... and so on up to... influence capable of throwing matter, chasing it and retrieving it ?
[Ans.] Yes, Gautam ! They are capable of doing so.
[Q. 2] Bhante ! Why gods are capable of throwing matter, chasing it and retrieving it ?
[Ans.] Gautam ! When matter is thrown, initially it moves with great speed but later its speed is reduced; whereas the speed of gods with great opulence is fast initially as well as later; moreover, it continues to accelerate. That is why gods are capable of throwing matter, chasing it and retrieving it.
३४. [ प्र. ] जइ णं भंते! देवे महिड्डीए जाव अणुपरियट्टित्ताणं गेण्हित्तए । कम्हा णं भंते ! सक्केणं देविंदेणं देवरण्णा चमरे असुरिंदे असुरराया नो संचाइए साहत्थि गेण्हित्तए ?
भगवतीसूत्र (१)
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Bhagavati Sutra (1)
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