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म 'हे भगवन् ! मैं (अपने अपराध के लिए) आप देवानुप्रिय से क्षमा माँगता हूँ। आप देवानुप्रिय मुझे क्षमा
करें। आप क्षमा करने योग्य (क्षमाशील) हैं। मैं ऐसा (अपराध) पुनः नहीं करूँगा।' यों कहकर शक्रेन्द्र मुझे ॐ वन्दन-नमस्कार करके उत्तर-पूर्व दिशा में चला गया। वहाँ जाकर शक्रेन्द्र ने अपने बायें पैर को तीन बार 9 भूमि पर पीटकर के, उसने असुरेन्द्र असुरराज चमर से इस प्रकार कहा- "हे असुरेन्द्र असुरराज चमर ! :
आज तो तू श्रमण भगवान महावीर के ही प्रभाव से बच गया है, (जा) अब तुझे मुझसे (किंचित् भी) भय फ नहीं है।" यों कहकर वह शक्रेन्द्र जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में वापस चला गया।
32. After that, Shakrendra, the overlord of gods, took the Vajra, went around me thrice clockwise, paid homage and obeisance to me and said, Bhante ! Taking your support, Chamarendra, the overlord (Indra) of
Asurs, had come to deprive me of my grandeur. At that time, getting 5 enraged, I had launched the Vajra to kill Chamarendra, the overlord #
(Indra) of Asurs. Immediately on doing that it occurred to me that on his own Chamarendra, the overlord (Indra) of Asurs, could not go upwards
up to Saudharma Kalp. And he narrated the whole story. Shakrendra 4 added—“Bhante ! I then used my Avadhi-jnana and saw you. The
moment I saw you I exclaimed-Oh ! Alas! What have I done !' Then I rushed after the Vajra (thunderbolt) with my maximum divine speed, arrived where you, Beloved of gods, are stationed and caught that Vajra when it was just four Anguls away from you, Beloved of gods ! (Otherwise a great calamity would have struck.) I have come to and I am here in Sumsumar-pur and this garden just to retrieve my Vajra.”
___ “Bhante ! I beg your forgiveness (for my fault). Kindly forgive me, E O Beloved of gods ! You are kind enough to forgive me. I wi 4 repeat such mistake.” Saying thus Shakrendra paid me homage and
obeisance and moved in north-east direction. There Shakrendra stomped the ground thrice with his left leg and said to Chamarendra, the overlord (Indra) of Asurs-"O Chamarendra, the overlord (Indra) of Asurs ! Your
life has been spared today by the grace of Shraman Bhagavan Mahavir. f Now you have nothing to fear from me." Uttering these words fi Shakrendra proceeded in the direction he came from.
विवेचन : शक्रेन्द्र के विभिन्न विशेषणों की व्याख्या-मघवं (मघवा) = बड़े-बड़े मेघों को वश में रखने वाला। के पागसासणं (पाकशासन) = पाक नामक बलवान शत्रु पर शासन करने वाला। सयक्कउं (शतक्रतु) = सौ क्रतुओं
अभिग्रहरूप सौ प्रतिमाओं अथवा श्रावक की पंचम प्रतिमारूप सौ प्रतिमाओं को कार्तिक सेठ के भव में धारण करने वाला। सहस्सक्खं (सहस्राक्ष) = हजार नेत्रों वाला-इन्द्र के ५०० मंत्री होते हैं, उनके १,००० नेत्र इन्द्र के
कार्य में प्रयुक्त होते हैं, इस अपेक्षा से सहस्राक्ष कहते हैं। वज्जपाणिं (वज्रपाणि) = इन्द्र के हाथ में वज्र नामक विशिष्ट के शस्त्र होता है। पुरंदरं (पुरन्दर) = असुरादि के पुरों-नगरों का नाश करने वाला। (वृत्ति, पत्रांक १७४)
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| भगवतीसूत्र (१)
(428)
Bhagavati Sutra (1)
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