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फुलिंगजालामालासहस्सेहिं चक्खुविक्खेव-दिट्ठिपडिघायं पि पकरेमाणं हुयवहअइरेग-तेयदिप्पंतं जइणवेगं फुल्लकिंसुयसमाणं महन्भयं भयंकरं चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो वहाए वजं निसिरइ।
२९. चमरेन्द्र द्वारा यों उत्पात मचाये जाने पर देवेन्द्र देवराज शक्र इस (उपर्युक्त) अनिष्ट, यावत् अमनोज्ञ और अश्रुतपूर्व (पहले कभी न सुने हुए) कर्णकटु वचन सुन-समझकर एकदम कोपायमान हो गया। यावत् क्रोध से (होठों को चबाता हुआ) बड़बड़ाने लगा तथा ललाट पर तीन रेखाएँ पड़ें, इस प्रकार से भुकृटि चढ़ाकर असुरेन्द्र असुरराज चमर से बोला-हे ! भो (अरे !) अप्रार्थित के प्रार्थक (अनिष्ट-मरण के इच्छुक) ! यावत् हीनपुण्या (अपूर्ण) चर्तुदशी के जन्मे हुए असुरेन्द्र ! असुरराज ! चमर ! आज तू नहीं रहेगा; तेरा अस्तित्व समाप्त हो जायेगा; यह समझ ले आज तेरी खैर (सुख) नहीं है। यों कहकर अपने श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठे-बैठे ही शक्रेन्द्र ने अपना वज्र उठाया और उस जाज्वल्यमान, विस्फोट करते हुए, तड़-तड़ शब्द करते हुए हजारों उल्काएँ छोड़ते हुए, हजारों अग्निज्वालाओं को छोड़ते हुए, हजारों अंगारों को बिखेरते हुए, हजारों स्फुलिंग (चिनगारियों) की ज्वालाओं से उस पर दृष्टि फेंकते ही आँखों के आगे चकाचौंध के कारण रुकावट डालने वाले, अग्नि से अधिक तेज से देदीप्यमान, अत्यन्त वेगवान् खिले हुए टेसू (किंशुक) के फूल के समान लाल-लाल, महाभयावह एवं भयंकर वज्र को असुरेन्द्र असुरराज चमरेन्द्र के वध के लिए छोड़ा।
29. On hearing and understanding these anisht... and so on up to... amanojna, unheard and harsh words, Devendra Shakra, the overlord of gods got angry at once... and so on up to... gnashing his teeth in anger, frowning and making three lines appear on his forehead, he addressed Chamarendra, the overlord (Indra) of Asurs—"O Asurendra ! Asuraraj ! Chamar! O hankerer for the undesirable (death) (aprarthik-prarthak)! ... and so on up to... born on an inauspicious fourteenth day ! You will cease to live today. Your existence will come to end today. Know that you are not secure anymore.” With these words, while still sitting on his throne, Shakrendra raised his Vajra (thunderbolt) that was glowing, exploding, spluttering, emitting thousands of meteors, exuding thousands of flames, showering thousands of sparks making it difficult to look at, more brilliant than fire, having very swift movement, and red like Kimshuk flower. He then launched such extremely dreadful and terrifying thunderbolt to kill Chamrendra, the overlord of Asurs. ___३०. तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया तं जलंतं जाव भयंकरं वज्जमभिमुहं आवयमाणं पासइ, पासित्ता झियाइ पिहाइ, झियायित्ता पिहायित्ता तहेव संभग्गमउडविडए सालंबहत्थाभरणे उड्ढंपाए अहोसिरे कक्खागयसेयं पिव विणिम्मुयमाणे विणिम्मुयमाणे ताए उक्किट्ठाए जाव तिरियमंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मझमझेणं वीतीवयमाणे जेणेव जंबुद्दीवे दीवे जाव जेणेव असोगवरपायवे जेणेव ममं अंतिए तेणेव
भगवतीसूत्र (१)
(424)
Bhagavati Sutra (1)
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