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________________ फफफफफफफफफफफफफफफफफफ 卐 卐 ***************************த*தமிழிதழிதிதி 卐 ५४. [ प्र. ] भगवन् ! वह (सनत्कुमारेन्द्र) उस देवलोक से आयु क्षय होने के बाद कहाँ उत्पन्न होगा ? and descending from that abode of gods, where will Sanatkumarendra, 5 the Indra (overlord) of Devs ( gods ) go ? Where will he be born ? भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है ! (यों कहकर गौतम स्वामी यावत् भगवान की पर्युपासना करने लगे ।) 5 f 卐 [ उ. ] गौतम ! सनत्कुमारेन्द्र उस देवलोक से च्यवकर (आयुष्य पूर्ण कर) महाविदेह वर्ष (क्षेत्र) में, 5 ( जन्म लेकर वहीं से) सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होगा, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा । 54. [Q.] Bhante ! Completing the life-span of the dimension of gods [Ans.] Gautam ! Descending from the dimension of gods, he will be 5 卐 born in the Mahavideh area and finally become a Siddha (liberated 5 soul )... and so on up to... end all miseries. 卐 "Bhante! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words... and 5 so on up to... ascetic Gautam resumed his activities. प्रथम उद्देशक की उपसंहार गाथाएँ CONCLUDING VERSES छट्ठम मासो अद्धमासे वासाइं अट्ठ छम्मासा । तीसग - कुरुदत्ताणं तव भत्तपरिण्ण - परियाओ ॥ १ ॥ उच्चत्त विमाणाणं पादुब्भव पेच्छणा य संलावे । किच्चि विवादुप्पत्ती सणकुमारे य भवियत्तं ॥ २ ॥ तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक मोका समाप्त ॥ ॥ तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त ॥ Jain Education International - 5 5 5 5 5 5555955 5 5 5 5 55955 5 5 55 55 5955 5 5 5 5 55 5 5 5 5 5 59595952 ॥ मोया समत्ता ॥ ॥ तइए सए : पढमो उद्देसो समत्तो ॥ गाथाओं का अर्थ-तिष्यक श्रमण का तप छट्ठ-छट्ठ ( निरन्तर बेला-बेला ) था और उसका अनशन एक मास का था । कुरुदत्तपुत्र श्रमण का तप अट्ठम-अट्ठम ( निरन्तर तेले - तेले) का था और उसका अनशन अर्द्ध-मासिक था - ( १५ दिन का) । तिष्यक श्रमण की दीक्षापर्याय आठ वर्ष की थी और फ्र कुरुदत्तपुत्र श्रमण की छह मास की। (इन दोनों से सम्बन्धित विषय इस उद्देशक में आया है।) इसके अतिरिक्त (दूसरे विषय आये हैं, जैसे कि) दो इन्द्रों के विमानों की ऊँचाई, एक इन्द्र का दूसरे के पास आगमन, परस्पर प्रेक्षण ( अवलोकन), उनका आलाप-संलाप, उनका कार्य, उनमें विवादोत्पत्ति तथा उनका निपटारा तथा सनत्कुमारेन्द्र की भवसिद्धिकता आदि विषयों का निरूपण इस उद्देशक में किया 5 गया है। 1 (401) फफफफफफफफफफफ 卐 For Private & Personal Use Only Third Shatak: First Lesson फ्र சு 卐 फ 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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