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5555555555555555555555555555555555558 ऊ अत्यन्त भयभीत हुए, भयत्रस्त (व्याकुल) होकर काँपने लगे, उनका आनन्दरस सूख गया। वे उद्विग्न हो
गये और भय के मारे चारों ओर इधर-उधर भाग-दौड़ करने लगे। (इस भगदड़ में) वे एक-दूसरे के 5 ॐ शरीर से चिपटने लगे अथवा एक-दूसरे के शरीर की ओट में छिपने लगे।
38. When numerous Asur Kumar gods and goddesses from the capital city Balichancha saw that capital city Balichancha looked like burning coal... and so on up to... a burning pyre. They were afraid, terrified and trembled. The stream of their happiness dried up. They were agitated and ran around in fear. In this confusion they tried to hide behind one another. असुरों द्वारा क्षमायाचना ASURS SEEK FORGIVENESS
३९. तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य ईसाणं देविंद ॐ देवरायं परिकुवियं जाणित्ता ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो तं दिव्यं देविढि दिव्वं देवज्जुतिं दिव्वं देवाणुभागं
दिव्वं तेयलेस्सं असहमाणा सव्वे सपक्खिं सपडिदिसिं टिच्चा करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं बद्धाविंति, एवं वयासी-अहो णं देवाणुप्पिएहिं दिव्या देविड्डी जाव अभिसमन्नागता, तं दिट्ठा णं देवाणुप्पियाणं दिव्या देविड्डी जाव लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया। तं खामेमो णं देवाणुप्पिया ! खमंतु णं देवाणुप्पिया ! खंतुमरिहंति णं देवाणुप्पिया ! णाइ भुज्जो एवं करणयाए त्ति कटु एयमदं सम्मं विणयेणं भुज्जो भुज्जो खाति।
३९. (ऐसी दुःस्थिति होने पर) तब बलिचंचा-राजधानी के बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों म ने यह जानकर कि देवेन्द्र देवराज ईशान के परिकुपित होने से (हमारी राजधानी इस प्रकार आग-सी
तप्त हो गई है); वे सब असुरकुमार देवगण, ईशानेन्द्र की उस दिव्य देव-ऋद्धि, दिव्य देव-द्युति, दिव्य ॐ देव-प्रभाव और दिव्य तेजोलेश्या को सहन न कर पाते हुए देवेन्द्र देवराज ईशान के चारों दिशाओं में
और चारों विदिशाओं में ठीक सामने खड़े होकर (ऊपर की ओर मुख करके) मस्तक पर अंजलि करके ईशानेन्द्र को जय-विजय शब्दों (के उच्चारणपूर्वक) से बधाने लगे-अभिनन्दन करने लगे। अभिनन्दन 卐 करके वे इस प्रकार बोले-'अहो ! (धन्य है !) आप देवानुप्रिय ने दिव्य देव-ऋद्धि उपलब्ध की है, प्राप्त
की है और अभिमुख कर ली है ! हमने आपके द्वारा उपलब्ध, प्राप्त और अभिसमन्वागत दिव्य ॐ देव-ऋद्धि को, यावत् देव-प्रभाव को प्रत्यक्ष देख लिया है। अतः हे देवानुप्रिय ! (अपने अपराध के के लिए) हम आपसे क्षमा माँगते हैं। आप देवानुप्रिय हमें क्षमा करें। आप देवानुप्रिय हमें क्षमा करने योग्य
हैं। (भविष्य में) फिर कभी इस प्रकार नहीं करेंगे।' इस प्रकार निवेदन करके उन्होंने ईशानेन्द्र से अपने ॐ अपराध के लिए विनयपूर्वक अच्छी तरह बार-बार क्षमा माँगी।
39. (In this wretched state) Those numerous Asur Kumar gods and goddesses from the capital city Balichancha became aware that all this (burning of their capital city) was due to the rage of Ishanendra, the Indra (overlord) of Devs (gods). Not being able to tolerate the divine opulence, radiance, influence and fire-power of Ishanendra, the Indra (overlord) of भगवतीसूत्र (१)
Bhagavati Sutra (1) ]
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