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३२. तब बलिचंचा-राजधानी-निवासी उन बहुत-से देवों और देवियों ने उस तामली बाल-तपस्वी की फिर दाहिनी ओर से तीन बार प्रदक्षिणा करके दूसरी बार, तीसरी बार पूर्वोक्त बात कही कि “हे देवानुप्रिय ! हमारी बलिचंचा राजधानी इन्द्रविहीन और पुरोहितरहित है, यावत् आप उसके स्वामी बनकर वहाँ स्थिति करने का संकल्प करिये।'' उन असुरकुमार देव-देवियों द्वारा पूर्वोक्त बात दो-तीन बार दोहराई जाने पर भी तामली मौर्यपुत्र ने कुछ भी जवाब नहीं दिया यावत् वह मौन धारण करके बैठा रहा।
32. Then those numerous gods and goddesses from Balichancha once again went around naive-hermit Tamali three times clockwise, paid him homage and obeisance, and repeated the aforesaid request a second and a third time--"Beloved of gods ! Our Balichancha, the capital city, is at present without an overlord and a priest-god... and so on up to... Please take over Balichancha, the capital city.” Even when numerous Asur Kumar gods and goddesses repeated their request two-three times, Tamali Mauryaputra did not respond... and so on up to... he remained silent.
३३. तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तामलिणा बालतवस्सिणा अणाढाइज्जमाणा अपरियाणिज्जमाणा जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया।
३३. तत्पश्चात् अन्त में जब तामली बाल-तपस्वी के द्वारा बलिचंचा। राजधानी-निवासी उन बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों का अनादर हुआ और उनकी बात नहीं मानी गई, तब वे (देव-देवीवृन्द) जिस दिशा से आये थे, उसी दिशा में वापस चले गये।
33. At last when those numerous gods and goddesses from Balichancha were thus insulted by naive-hermit Tamali and their request was not accepted, they went back in the direction they came from.
विवेचन : सूत्र ३० में देवों की शीघ्र गति के १० विशेषण ध्यान देने योग्य हैं-उक्किट्ठा = उत्कर्षवती, तुरिया = त्वरावाली गति, चवला = शारीरिक चपलतायुक्त, चंडा = रौद्ररूपा, जइणा = दूसरों की गति को जीतने वाली, छेया = उपायपूर्वक प्रवृत्ति होने से निपुण, सीहा = सिंह की गति के समान अनायास होने वाली, सिग्या = शीघ्रगामिनी, दिव्या = दिव्य-देवों की, उद्धृया = गमन करते समय वस्त्रादि उड़ा देने वाली, अथवा उद्धत सदर्प गति। ये सब देवों की गति (चाल) के विशेषण हैं। (बत्तीस प्रकार की नाटक विधि का वर्णन रायपसेणियसूत्र में देखें।)
बृहत्संग्रहणी ग्रन्थ में देवताओं की गति का प्रमाण इस प्रकार बताया है-चंडा गति में एक कदम में
३,५८० योजन प्रमाण दूरी तय की जाती है। चवला गति में एक कदम में ४,७२.६३३ योजन, जइणा गति में ६,६१,६८६ योजन और वेगा (सिग्घा) गति में ८,५०,७४० योजन प्रमाण क्षेत्र एक कदम में पार किया जाता है।
देवों ने बलिचंचा में स्थिति प्रकल्प करने व इन्द्र पद स्वीकारने के लिए संकल्प (निदान) करने के लिए पाँच पदों का संकेत किया है-(१) आदर करें, (२) परिज्ञा-उनके स्वामी होने का लक्ष्य रखें। (३) स्मृति को स्थिर करें, (४) अर्थबंध-लक्ष्य के साथ तादात्म्य स्थापित करें, (५) निदान-लक्ष्य-प्राप्ति की तीव्र अभिलाषा करें।
भगवतीसूत्र (१)
(384)
Bhagavati Sutra (1)
步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步生
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