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________________ 85 ) ) )) )) ) ) ) )) ) ) )) ) )) ) ))) 牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙乐园 ... २९. तए णं तस्स तामलिस्स बालतवस्सिस्स अन्नया कयाइं पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि अणिच्चजागरियंक जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए जाव समुप्पजित्था-‘एवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं विपुलेणं जाव म उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं महाणुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे जाव धमणिसंतते जाते, तं अत्थि जाक मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे तावता मे सेयं कल्लं जाव जलंते तामलित्तीए नगरीए ॐ ट्ठिाभटे य पासंडत्थे य गिहत्थे य पुव्वसंगतिए य परियायंसगतिए य आपुच्छित्ता तामलित्तीए नगरीए मझमझेणं निग्गछित्ता पाउग्गं कुण्डियमाइयं उवकरणं दारुमयं च पडिग्गहं एगंते एडित्ता तामलित्तीए, ॐ नगरीए उत्तरपुरित्थमे दिसिभाए णियत्तणियमंडलं आलिहित्ता संलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स पाओवगयस्स कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ। एवं संपेत्ता कल्लं जाव जलंते जाव आपुच्छइ, आपुच्छित्ता तामलित्तीए एगंते एडेइ। जाव भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगमणं निवन्ने।' २९. किसी एक दिन पूर्व रात्रि व्यतीत होने पर पश्चिम रात्रि के समय अनित्य जागरिका अर्थात् संसार, शरीर आदि की क्षणभंगुरता का विचार करते हुए उस बालतपस्वी तामली को इस प्रकार चिन्तन यावत् मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि 'मैं इस उदार, विपुल यावत् उदग्र, उदात्त, उत्तम और + महाप्रभावशाली तपःकर्म करने से शुष्क और रूक्ष हो गया हूँ, यावत् मेरा शरीर इतना कृश हो गया है : कि नाड़ियों का जाल बाहर दिखाई देने लग गया है। इसलिए जब तक मुझमें उत्थान, कर्म, बल, वीर्य 卐 और पुरुषकार-पराक्रम है, तब तक मेरे लिए श्रेयस्कर है कि कल प्रातःकाल जाज्वल्यमान सूर्योदय होने पर मैं ताम्रलिप्ती नगरी में जाऊँ। वहाँ जो दृष्ट-भाषित-(जिनको पहले गृहस्थावस्था में देखा है और * जिनके साथ बातचीत की है)' व्यक्ति हैं, जो पाषण्डस्थ (श्रमण तापस) हैं, या जो गृहस्थ हैं, जो पूर्व म परिचित (गृहस्थावस्था के परिचित) हैं, या जो पश्चात् परिचित (तापस जीवन में परिचय में आये हुए) के है हैं, तथा जो समकालीन प्रव्रज्या-दीक्षा पर्याय से युक्त पुरुष हैं, उनसे पूछकर (विचार-विनिमय करके), ॐ ताम्रलिप्ती नगरी के बीचोंबीच से निकलकर पादुका (खड़ाऊ), कुण्डी आदि उपकरणों तथा काष्ठ-पात्र 卐 को एकान्त में रखकर, ताम्रलिप्ती नगरी के उत्तर-पूर्व दिशा भाग (ईशानकोण) में निवर्तनिक (एक) परिमित क्षेत्र विशेष, अथवा स्वशरीर प्रमाण स्थान) मण्डल का आलेखन (रेखा खींचकर क्षेत्रमर्यादा) करके, संलेखना (काय और कषाय को कृश करने वाला) तप से आत्मा को सेवित कर आहार-पानी का सर्वथा त्याग करके पादपोपगमन संथारा करूँ और मृत्यु की आकांक्षा नहीं करता हुआ (शान्तचित्त 5 से समभाव में) विचरण करूँ; मेरे लिए यही उचित है। ___यों विचार करके प्रभातकाल होते ही यावत् जाज्वल्यमान सूर्योदय होने पर (पूर्वोक्त-पूर्व चिन्तित ; संकल्पानुसार सबसे यथायोग्य) पूछा। विचार विनिमय करके उस (तामली तापस) ने (ताम्रलिप्ती नगरी के बीचोंबीच से निकलकर अपने उपकरण) एकान्त स्थान में छोड़ दिये। फिर यावत् आहार-पानी का ॥ सर्वथा प्रत्याख्यान किया और पादपोपगमन नामक अनशन (संथारा) अंगीकार किया। 29. Later, some other night, past the first half and during the third quarter, while Mauryaputra Tamali Gathapati was awake pondering 5555555听听听听听听听听听听听听听听 牙牙牙牙牙牙牙 | तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक (379) Third Shatak: First Lesson 5555555555555555555555555555555558 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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