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in agricultural produce. With passage of time the name Tamralipti has been corrupted to Taamluke; it is near Kolkata in Midnapur district. Among the merchants of Tamralipti city Maurya was a well known clan.
Atapana-For the enhancement of radiant energy or Kundalini, Atapana is an effective technique. This is acquired through solar energy. Hermits and monks employ this technique to bolster life-force as well as inner purity. For this practice a high spot like hilltop is chosen and it is called Atapana Bhumi. Brihatkalp Bhashya contains detailed description of this technique and its branches. (Bhagavai, Part-1, p. 241) प्रव्रज्या का नाम 'प्राणामा' क्यों ? WHY PRANAMA INITIATION ?
२७. [प्र. ] से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ-पाणामा पव्वज्जा ?
[उ. ] गोयमा ! पाणामाए णं पव्वज्जाए पव्वइए समाणे जं जत्थ पासइ इंदं वा खंदं वा रुदं वा सिवं वा वेसमणं वा अजं वा कोट्टकिरियं वा रायं वा जाव सत्थवाहं वा, कागं वा साणं वा पाणं वा उच्चं पासइ उच्चं पणामं करेति, नीयं पासइ नीयं पणामं करेइ, जं जहा पासति तस्स तहा पणामं करेइ। से तेणट्टेणं जाव पव्वज्जा।
२७. [प्र. ] भगवन् ! तामली द्वारा ग्रहण की हुई प्रव्रज्या 'प्राणामा' क्यों कहलाती है?
[उ. ] हे गौतम ! प्राणामा प्रव्रज्या में प्रव्रजित होने पर वह (प्रवजित) व्यक्ति जिसे जहाँ देखता है, (उसे वहीं प्रणाम करता है) (अर्थात्-) इन्द्र को, स्कन्द (कार्तिकेय) को, रुद्र (महादेव) को, शिव (शंकर या किसी व्यन्तरविशेष) को, वैश्रमण (उत्तर दिशा का लोकपाल कुबेर) को, आर्या (प्रशान्तरूपा पार्वती) को, रौद्ररूपा चण्डिका (महिषासुरमर्दिनी चण्डी) को, राजा को, यावत् सार्थवाह को, (अर्थात्राजा, युवराज, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, श्रेष्ठी एवं सार्थवाह-बनजारे को) अथवा कौआ, कुत्ता और श्वपाक = चाण्डाल (आदि सबको प्रणाम करता है।) इनमें से उच्च व्यक्ति को देखता है तो उच्चरीति से (विशेष) प्रणाम करता है, नीच को देखकर नीची रीति से (सामान्य) प्रणाम करता है। (अर्थात्-) जिसे जिस रूप में देखता है, उसे उसी रूप में प्रणाम करता है। इस कारण हे गौतम ! इस प्रव्रज्या का नाम 'प्रणामा' प्रव्रज्या है।'
27. (Q.) Bhante ! Why the initiation accepted by Tamali is called 'Pranama'?
१. वर्तमान में भी वैदिक सम्प्रदाय में 'प्राणामा' प्रव्रज्या प्रचलित है। इस प्रकार की प्रव्रज्या में दीक्षित हुए एक सज्जन
के सम्बन्ध में 'सरस्वती' (मासिक पत्रिका, भाग १३, अंक १, पृष्ठ १८०) में इस प्रकार के समाचार प्रकाशित हुए हैं-"." इसके बाद सब प्राणियों में भगवान की भावना दृढ़ करने और अहंकार छोड़ने के इरादे से प्राणिमात्र को ईश्वर समझकर आपने साष्टांग प्रमाण करना शुरू किया। जिस प्राणी को आप आगे देखते, उसी के सामने अपने पैरों पर आप जमीन पर लेट जाते। इस प्रकार ब्राह्मण से लेकर चाण्डाल तक और गौ से लेकर गधे तक को आप साष्टांग नमस्कार करने लगे।"
(शेष अगले पृष्ठ पर)
| तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक
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Third Shatak: First Lesson
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