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के व्यतीत होने पर प्रभात का प्रादुर्भाव होते ही (अर्थात् प्रातःकाल का प्रकाश होने पर) यावत्
जाज्वल्यमान सूर्य के उदय होने पर मैं स्वयं अपने हाथ से काष्ठपात्र बनाऊँ और पर्याप्त अशन, पान, ॐ खादिम और स्वादिम रूप चारों प्रकार का आहार तैयार कराकर, अपने मित्र, ज्ञातिजन, स्वजन-सम्बन्धी म तथा दास-दासी आदि परिजनों को आमन्त्रित करके उन्हें सम्मानपूर्वक अशनादि चारों प्रकार के आहार
का भोजन कराऊँ फिर वस्त्र, सुगन्धित पदार्थ, माला और आभूषण आदि द्वारा उनका सत्कार-सम्मान करके उन्हीं मित्र, ज्ञातिजन, स्वजन-सम्बन्धी और परिजनों के समक्ष अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का सारा दायित्व सौंपकर उन मित्र-ज्ञातिजन-स्वजन-परिजनादि तथा अपने ज्येष्ठपुत्र से पूछकर, मैं स्वयमेव काष्ठपात्र लेकर एवं मुण्डित होकर 'प्रणामा' नाम की प्रव्रज्या अंगीकार करूँ।
प्रव्रजित होते ही मैं इस प्रकार का अभिग्रह (संकल्प = प्रतिज्ञा) धारण करूँ कि मैं जीवनभर निरन्तर छट्ठ-छ? (बेले-बेले) तपश्चरण करूँगा और सूर्य के सम्मुख दोनों भुजाएँ ऊँची करके ॐ आतापना भूमि में आतापना लेता हुआ रहूँगा और छट्ठ भक्त के पारणे के दिन आतापनाभूमि से नीचे
उतरकर स्वयं काष्ठपात्र हाथ में लेकर ताम्रलिप्ती नगरी के ऊँच, नीच और मध्यम कुलों के गृहसमुदाय में भिक्षाचरी के लिए पर्यटन करके भिक्षाविधि द्वारा शुद्ध ओदन (केवल भात) लाऊँगा और उसे २१ बार धोकर खाऊँगा।' इस प्रकार तामली गृहपति ने शुभ विचार किया।
इस प्रकार का विचार करके रात्रि व्यतीत होते ही प्रभात का प्रादुर्भाव होने पर यावत् तेज से जाज्वल्यमान सूर्य के उदय होने पर उसने स्वयमेव लकड़ी का पात्र बनाया। फिर अशन, पान, खादिम,
स्वादिम रूप चारों प्रकार का आहार तैयार करवाया। तत्पश्चात् उसने स्नान किया, बलिकर्म किया, + कौतुक मंगल और प्रायश्चित्त किया, शुद्ध और उत्तम वस्त्र ठीक-से पहने, अल्पभार तथा बहुमूल्य के
आभूषणों से अपने शरीर को अलंकृत किया। तत्पश्चात् भोजन के समय वह तामली गृहपति
भोजनमण्डल में आकर शुभासन पर सुखपूर्वक बैठा। इसके बाद तामली गृहपति (आमंत्रित) मित्र, ॐ ज्ञातिजन, स्वजन सम्बन्धी एवं परिजन आदि के साथ उस विपुल, अशन, पान, खादिम और स्वादिम
रूप चतुर्विध आहार का आस्वादन करता है, विशेष स्वाद लेता है, दूसरों को परोसता है, भोजन 9 कराता है और स्वयं भोजन करता है। $ 25. One night, past the first half and during the third quarter, while
Mauryaputra Tamali Gathapati was awake thinking about family matters, an aspiration (ajjhatthiye or adhyatmik), ... and so on up to... intention (sankappe or sankalp) surfaced—“These fruits of the auspicious and beatific deeds properly and steadfastly performed in the near and remote past continue to be with me till now. It is due to these that my silver, gold, wealth, stock of grains, family and livestock still continue to multiply. Also my valuable wealth including cash, gold, gems, beads, pearls, conch-shells, gemstones like moon-stone (Chandrakant mani), coral, Rakt-ratna and rubies continues to accumulate in larger and larger quantities every day.
A听听听听听听听听听听听听听听听听$555555555.
ॐ55555
| तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक
(373)
Third Shatak : First Lesson 3555555555555555555555555555555555558 Jain Education International For Private & Personal Use Only
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