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फ्र three assemblies, seven armies, seven commanders and sixteen thousand guard-gods as well as numerous other Vaimanik Devs (celestial vehicular gods) and goddesses. His capacity of transmutation (vikurvana) is as follows-He has the same power to pervade (akirna) as that of Shakrendra elaborated by the example of a young man tightly holding the hand of a young woman or like the spokes of a wheel tightly held by its axle. However, Gautam ! The aforesaid great power is 5 theoretical. In practice he has never performed transmutation (to said extant), neither he does, nor will he do.
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है कि भाषापर्याप्ति का सम्बन्ध स्वरयंत्र से तथा मनःपर्याप्ति का सम्बन्ध मानसिक क्रिया से है। भाषा के बिना
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विवेचन : पर्याप्ति का अर्थ है जीवनी शक्ति की पूर्णता । शरीर निर्माण के प्रारम्भ काल में ही पर्याप्तियों की रचना हो जाती है। पर्याप्ति छह है। यहाँ देवों के भाषा - और मनः पर्याप्ति को एक मानने का कारण यह हो सकता
Elaboration-Paryapti means full development of the life-energy. These paryaptis manifest themselves during the early stages of evolution of the body. They are six in number. Here the bhasha and man (speech
and mind) paryaptis have been clubbed together. The possible reason for
this is that faculty of speech is related to the vocal organs and that of
mind is related to mental activity. The mental activities of thinking and contemplation are not possible in absence of language or faculty of speech. And in absence of mind there can be no language. Gods are born instantaneously; that is why the two have been clubbed together. (Bhagavai, Bhashya by Acharya Mahaprajna, Part-2, p. 15)
चिन्तन-मनन आदि मन की क्रियाएँ नहीं हो सकतीं और मन के बिना भाषा नहीं हो सकती। औपपातिक होने
के कारण देवों के भाषा और मनःपर्याप्ति एक साथ निष्पन्न होती हैं । अतः यहाँ एक माना गया है। (भगवई 5 भाष्य, आचार्य महाप्रज्ञ, भाग २, पृष्ठ १५ )
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१४. [ प्र. ] जइ णं भंते ! तीसए देवे एमहिड्ढीए एवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए, सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो अवसेसा सामाणिया देवा केमहिड्ढीया ?
१४. [ प्र. ] भगवन् ! यदि तिष्यकदेव इतनी महाऋद्धि वाला है यावत् इतनी विकुर्वणा करने की
शक्ति रखता है, तो हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के दूसरे सब सामानिक देव कितनी महाऋद्धि वाले
हैं यावत् उनकी विकुर्वणा - शक्ति कितनी है ?
तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक
25595555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 95 96 95 95 96 97 95 95 95 5 5 5 5 5 59595959595555 5 5 55 2
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Third Shatak: First Lesson
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[उ. ] तहेव सव्वं जाव एस णं गोयमा ! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो एगमेगस्स सामाणियस्स देवस्स फ इमेयारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए, नो चेव णं संपत्तीए विकुव्विंसु वा विकुव्वंति वा विकुब्विस्रांति वा । तायत्तीसय- लोगपाल - अग्गमहिसीणं जहेव चमरम्स । नवरं दो केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे, अन्नं तं चैव ।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति दोच्चे गोयमे जाव विहरति ।
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