SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 415
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 3555555555555555555555555555 ) ) )) tightly pack whole of Jambu Dveep with their transmuted forms. Bhavan-pati gods of the north direction and Chandra Deu have the 卐io power to pervade and tightly pack a little more area than that of Jambu Dveep with their transmuted forms. (Prajnapana Sutra; Tattvarth Sutra Bhashya, 4/6 and 11) )) )) ) )) )) ) )) )) ) ) )) )) ) ) )) ))) )) ) )) )) शक्रेन्द्र आदि देवों की ऋद्धि OPULENCE OF SHAKRENDRA AND OTHER GODS १२. [प्र.] "भंते !" त्ति भगवं दोच्चे गोयमे अग्गिभूइ अणगारे समणं भगवं महावीर वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-जइ णं भंते ! जोतिसिंदे जोतिसराया एमहिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू विकुवित्तए सक्के णं भंते ! देविंदे देवराया केमहिड्ढीए जाव केवइयं च णं पभू विउवित्तए ? [उ. ] गोयमा ! सक्के णं देविंदे देवराया महिड्ढीए जाव महाणुभागे। से णं तत्थ बत्तीसाए विमाणावाससयसहस्साणं चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं जाव चउण्हं चउरासीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अनेसिं च जाव विहरइ। एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुवित्तए। एवं जहेव चमरस्स तहेव भाणियव्वं, ॐ नवरं दो केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे, अवसेसं तं चेव। एस णं गोयमा ! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो इमेयारूवे विसए विसयमेत्ते णं बुइए नो चेव णं संपत्तीए विकुबिसु वा विकुब्बति वा विकुब्बिस्सति वा। १२. [प्र. ] 'भगवन् !' इस प्रकार सम्बोधन करके द्वितीय गणधर भगवान गौतमगोत्रीय ॥ अग्निभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार करके ॐ पूछा--"भगवन् ! यदि ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज ऐसी महाऋद्धि वाला है, यावत् इतनी वैक्रिय शक्ति है वाला है, तो देवेन्द्र देवराज शक्र कितनी महाऋद्धि वाला है और कितनी वैक्रिय शक्ति वाला है? [उ.] गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र महान् ऋद्धि वाला है यावत् महाप्रभावशाली है। वह वहाँ बत्तीस लाख विमानवासों पर तथा चौरासी हजार सामानिक देवों पर यावत् (त्रायस्त्रिंशक देवों एवं लोकपालों पर) तीन लाख छत्तीस हजार आत्मरक्षक देवों पर, दूसरे बहुत-से देवों पर आधिपत्य करता है। उसकी 卐 वैक्रिय शक्ति के विषय में चमरेन्द्र की तरह सब कथन यहाँ भी करना चाहिए; विशेष यह है कि वह अपने वैक्रियकृत रूपों से) दो सम्पूर्ण जम्बूद्वीप जितने स्थल को भरने में समर्थ है; और शेष सब पूर्ववत् ॐ है। (अर्थात्-तिरछे असंख्यात द्वीप-समुद्रों जितने स्थल को भरने में समर्थ है।) गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र की यह इस रूप की वैक्रिय शक्ति तो केवल शक्तिरूप (क्रियारहित शक्ति) है, किन्तु साक्षात् क्रिया द्वारा उसने ऐसी विक्रिया की नहीं, करता नहीं और न भविष्य में करेगा। 12. (Q.) “Bhante !" Addressing thus the second Gautam, ascetic Agnibhuti paid homage and obeisance to Shraman Bhagavan Mahavir and said—“When so great is the opulence (riddhi)... and so on up to... capacity of transmutation (vikurvana) of Jyotishkendra, the Indra (overlord) of Jyotishks, then how great is the opulence (riddhi)... and so on up to... capacity of transmutation (vikurvana) of Devendra Whakra, + the Indra (overlord) of Devs (gods)?" )) ) ) ) ) ) )) ) )) )) )) ) )) ) ) भभभ) )) भ 44 | तृतीय शतक :प्रथम उद्देशक (357) Third Shatak: F ILesson | 卐)) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy