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visible.
In the same way numerous Vaikriya forms although connected with the original are separately visible. The axle connected with many spokes has no visible gaps or holes; in the same way Chamarendra, although connected with numerous transmuted Asur Kumar gods and goddesses, is separately visible but still tightly packs the whole Jambu continent. The same is true for the power of transmutation of other gods. Are gross particles acquired during the process of Vaikriya Samudghat? The answer is that the particles of gems acquired during the process of Vaikriya Samudghat are not gross. They are minute but have purity like gems. However, some acharyas are of the opinion that gems and other gross particles get transformed into vaikriya pudgals (transmutable particles). (Bhagavati Sutra : elaboration by Pt. Ghevar 卐 5 Chand, part-2, p. 539)
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वैरोचनेन्द्र बलि की ऋद्धि OPULENCE OF VAIROCHANENDRA BALI
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१०. [ प्र. ] तए णं से तच्चे गोयमे वायुभूती अणगारे दोच्चेणं गोयमेणं अग्गिभूइणा अणगारेण सद्धिं जेणेव समणे भगवं महावीरं जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी - जइ णं भंते ! चमरे असुरिंदे असुरराया एमहिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए, बली णं भंते ! वइरोयणिंदे वइरोयणराया केंमहिड्ढीए जाव केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए ?
[ उ. ] गौतम ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि महाऋद्धि - सम्पन्न है, यावत् महाप्रभावशाली है। वह वहाँ तीस लाख भवनावासों का तथा साठ हजार सामानिक देवों का अधिपति है। जैसे चमरेन्द्र के सम्बन्ध में वर्णन किया गया, वैसे बलि के विषय में भी शेष वर्णन जान लेना चाहिए। विशेषता इतनी ही है कि बलि वैरोचनेन्द्र अपनी विकुर्वणा - शक्ति से सातिरेक सम्पूर्ण जम्बूद्वीप ( जम्बूद्वीप से
कुछ
[ उ. ] गोयमा ! बली णं वइरोयणिंदे वइरोयणराया महिड्ढीए जाव महाणुभागे । से णं तत्थ तीसा भवणावाससयसहस्साणं, सट्ठीए सामाणियसाहस्सीणं सेसं जहा चमरस्स, तहा बलिस्सवि णेयव्वं णवरं सातिरेगं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं ति भाणियव्वं । तं चैव णिरवसेसं णेयव्वं, णवरं णाणत्तं जाणियव्वे भवणेहिं सामाणिएहिं य ।
सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति तच्चे गोयमे वाउभूइ विहरइ ।
१०. [ प्र. ] इसके पश्चात् तीसरे गौतम ( - गोत्रीय) वायुभूति अनगार द्वितीय गौतम अग्निभूति
5 अनगार के साथ जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे वहाँ आये, यावत् श्रमण भगवान महावीर की 5 पर्युपासना करते हुए पूछा- 'भगवन् ! यदि असुरेन्द्र असुरराज चमर इतनी विशाल ऋद्धि वाला है,
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5 यावत् इतनी विकुर्वणा - शक्ति से सम्पन्न है, तो हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि (उत्तर दिशा
का इन्द्र) कितनी बड़ी ऋद्धि वाला है? यावत् वह कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ?'
तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक
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Third Shatak: First Lesson
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