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________________ 8555555555555555555555555555555555 卐 है, इत्यादि समग्र वर्णन (चमरेन्द्र, अग्रमहिषी देवियों तक का सारा वर्णन) अपृष्टव्याकरण (प्रश्न पूछे ॥ बिना ही उत्तर) के रूप में यहाँ कहना चाहिए। 7. “Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words the second Gautam, ascetic Agnibhuti, paid homage and obeisance to 4 Shraman Bhagavan Mahavir. After paying homage and obeisance he went where the third Gautam, ascetic Vayubhuti was seated. Coming near, he said to the third Gautam, ascetic Vayubhuti—Gautam ! So great is the opulence of Chamarendra, the Indra (overlord) of Asurs. All aforesaid description (about Chamarendra his retinue and queens) should be stated here as aprishtavyakaran (answer without any question). ८. तेणं से तच्चे गोयमे वायुभूती अणगारे दोच्चस्स गोतमस्स अग्गिभूतिस्स अणगारस्स एवमाइक्खमाणस्स भासमाणस्स, पण्णवेमाणस्स परूवेमाणस्स एयमद्वं नो सद्दहति, नो पत्तियति, नोज रोएइ; एयमढे असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे उट्ठाए उद्वेति, उद्वित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-एवं खलु भंते ! मम दोच्चे गोतमे अग्गिभूती अणगारे एवमाडक्खति भासड पण्णवेड परूवेड-एवं खल गोतमा ! चमरे असरिंदे असरराया महिड्डीए जावई महाणुभावे से णं तत्थ चोत्तीसाए भवणावाससयसहस्साणं एवं तं चेव सवं अपरिसेसं भाणियव्वं जाव 卐 अग्गमहिसीणं वत्तव्वया समत्ता। [प्र. ] से कहमेयं भंते ! एवं ? [उ. ] 'गोयमा' दि समणे भगवं महावीरे तच्चं गोतमं वायुभूतिं अणगारं एवं वयासि-जंणं गोतमा ! म तव दोच्चे गोयमे अग्गिभूती अणगारे एवमाइक्खइ ४-“एवं खलु गोयमा ! चमरे असुरिंदे असुरराया महिड्ढीए एवं तं चेव सव्वं जाव अग्गमहिसीओ। सच्चे णं एसमठे, अहं पि णं गोयमा ! एवमाइक्खामि भासेमि पनवेमि परूवेमि एवं खलु गोयमा ! चमरे असुरिंदे असुरराया जाव महिड्ढीए सो चेव [ बितिओ गमो भाणियव्यो ] जाव अग्गमहिसीओ, सच्चे ॐ गं एसमढे। ८. तदनन्तर अग्निभूति अनगार द्वारा कथित, भाषित, प्रज्ञापित (निवेदित) और प्ररूपित उपर्युक्त # बात पर तृतीय गौतम वायुभूति अनगार को श्रद्धा नहीं हुई, प्रतीति नहीं हुई, न ही उन्हें रुचिकर लगी। अतः उक्त बात पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि न करते हुए वे तृतीय गौतम वायुभूति अनगार उठे और ॥ + उठकर जहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी विराजमान थे, वहाँ (उनके पास) आये और यावत् उनकी ॐ पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले-भगवन् ! द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार ने मुझसे इस प्रकार ॐ कहा, इस प्रकार भाषण किया, इस प्रकार बतलाया और प्ररूपित किया कि-'असुरेन्द्र असुरराज चमर ऐसी महान् ऋद्धि वाला है, यावत् ऐसा महान् प्रभावशाली है कि वह चौंतीस लाख भवनावासों आदि पर आधिपत्य करता हआ विचरता है। (यहाँ उसकी अग्रमहिषियों तक का शेष सब वर्णन पूर्ववत कहना चाहिए); तो हे भगवन् ! यह बात कैसे है?' भगवतीसूत्र (१) (348) Bhagavati Sutra (1) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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