________________
फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ
卐
फ्र
5 दव्वाइं । खेत्तओ लोगप्पमाणमेत्ते । कालओ न कयाइ न आसि जाव (सु. २) निच्चे । भावओ वण्णमंते गंध. 5 रस. फासते । गुणओ गहणगुणे ।
फ्र
卐
[उ.] गौतम ! पुद्गलास्तिकाय में पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श हैं। वह रूपी है,
卐
अजीव है, शाश्वत और अवस्थित लोकद्रव्य है। संक्षेप में उसके पाँच प्रकार हैं, यथा- द्रव्य से, क्षेत्र से, 5 काल से, भाव से और गुण से । द्रव्य की अपेक्षा - अनन्त द्रव्यरूप है, क्षेत्र की अपेक्षा- लोक प्रमाण है, 卐 काल की अपेक्षा- वह कभी नहीं था ऐसा नहीं, यावत् नित्य है । भाव की अपेक्षा- वह वर्ण वाला, गन्ध वाला, रस वाला और स्पर्श वाला है । गुण की अपेक्षा- वह ग्रहण गुण वाला है।
卐
卐
6. [Q.] Bhante ! How many colours, odours, tastes and touches 5 Pudgalastikaya (matter entity) has ?
卐
5
卐
5
卐
क्र
[Ans.] Gautam ! Pudgalastikaya (matter entity) is an entity (dravya) that has five varnas (colours ), five rasas (tastes ), two gandh (two smells), F f eight sparsh (touches), as also it is rupi (with form), ajiva ( lifeless), 5 f shashvat (eternal), avasthit (indestructible) and integral part of Lok (occupied space or universe). Briefly speaking, it has five attributes in context of dravya ( entity), kshetra (space or area), kaal (time), bhaava फ्र f (state) and guna (properties). In context of Dravya (entity) F
फ्र
卐
Pudgalastikaya (matter entity) is infinite entities. In context of Kshetra fi (space or area) it pervades the whole Lok (occupied space; universe). In other words, it is confined to Lok. In context of Kaal (time) it is not that फ्र it never existed... and so on up to... it is nitya (perpetual). In context of ㄓ Bhaava (state) it is endowed with colour, smell, taste and touch. In y context of Guna (properties) it has the property of grahan (being acquirable). (In other words it is acquired by bodies including gross फ्र physical body and sense organs. This also means it has the property of combining and separating or integrating and disintegrating.)
£
फफफफफफफ
क्र
fi
f
卐
६. [ प्र. ] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय में कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श हैं ? 5
F
F
5
Б
F
धर्मास्तिकायादि के स्वरूप का निश्चय CONFIRMING THE FORM OF DHARMASTIKAYA
७. [ प्र. १ ] एगे भंते ! धम्मत्थिकायपदेसे 'धम्मत्थिकाए' त्ति वत्तव्यं सिया ?
[उ. ] गोयमा ! णो इणट्टे समट्ठे ।
७. [ प्र. १ ] भगवन् ! क्या धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश को 'धर्मास्तिकाय' कहा जा सकता है ?
[उ. ] गौतम ! धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश को धर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सकता।
F
7. [Q. 1] Bhante ! Can one section (pradesh) of Dharmastikaya (motion f entity) be called Dharmastikaya ?
F
5
द्वितीय शतक : दशम उद्देशक
6
F
F
(327)
Jain Education International
出
卐
卐
Second Shatak: Tenth Lesson
For Private & Personal Use Only
फ
फ्र
卐
फ
फ्र
卐
卐
卐
57
乐
फ
45555*****************************ம்
卐
www.jainelibrary.org