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tempered the vipul tejoleshya (great radiant energy or fire power) he was endowed with. He spent his time enkindling (bhaavit) his soul by observing a series of two day fasts (missing six meals), ascetic-discipline ( restraints) and austerities.
२२. तए णं से भगवं गोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए झाणं झियायइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेति, पडिलेहित्ता भायणाई वत्थाई पडिलेहेइ, पडिलेहित्ता भायणाई पमज्जइ, पमज्जित्ता भायणाई उग्गाहेति, उग्गहित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नम॑सति, २ एवं वयासी - इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए छट्ठक्खमणपारणगंसि रायगिहे नगरे उच्च-नीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए ।
अहासु देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ।
२२. इसके पश्चात् छट्ठ के पारणे के दिन भगवान इन्द्रभूति गौतम स्वामी ने प्रथम प्रहर में स्वाध्याय किया; द्वितीय प्रहर में ध्यान किया; तृतीय प्रहर में शारीरिक शीघ्रतारहित, मानसिक चपलतारहित, आकुलता से रहित होकर मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना की; फिर पात्रों और वस्त्रों की प्रतिलेखना की; तदनन्तर पात्रों का प्रमार्जन किया और फिर उन पात्रों को लेकर जहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी विराजमान थे, वहाँ आये । वहाँ आकर भगवान को वन्दन - नमस्कार कर इस प्रकार निवेदन किया- 'भगवन् ! आज मेरे छट्ठ तप के पारणे का दिन है। अतः आपसे आज्ञा प्राप्त होने पर मैं राजगृह नगर में उच्च नीच और मध्यम कुलों के गृह - समुदाय में भिक्षाचर्या की विधि के अनुसार, भिक्षाटन करना चाहता हूँ ।'
भगवान ने कहा- 'हे देवानुप्रिय ! जिस प्रकार तुम्हें सुख हो, वैसे करो; किन्तु विलम्ब मत करो।'
22. Then on the day of breaking his two-day fast Bhagavan Indrabhuti Gautam Swami did studies during the first quarter of the day and meditation during the second quarter of the day. During the third quarter he inspected (pratilekhana) his mukh-vastrika (a handkerchief-like piece of cloth used to cover mouth; also a specially designed mouth-cover) followed by inspection of pots and clothes. He then cleaned the pots and carrying them came where Bhagavan Mahavir was seated. After paying homage and obeisance he submitted-"Bhante ! Today is the day of breaking my two day fast (shashthakhaman tap). Therefore, seeking your permission I wish to go to Rajagriha city and visit low, medium and high caste families to collect alms following the prescribed procedure."
Bhagavan said "Beloved of gods! Do as you please without any delay."
द्वितीय शतक : पंचम उद्देशक
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Second Shatak: Fifth Lesson
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