________________
)5555)))95555555)))))5555555555559
因$$$ $$$$$$$$$$$$$$$ $55 5 乐
म लिया था, (शास्त्रों के अर्थों में जहाँ संदेह था, वहाँ) पूछकर उन्होंने यथार्थ निर्णय कर लिया था। उन्होंने + शास्त्रों के अर्थों और उनके रहस्यों को निर्णयपूर्वक जान लिया था। उनकी हड्डियाँ और मज्जाएँ (नसे)
(निर्ग्रन्थ प्रवचन के प्रति) प्रेमानुराग में रंगी हुई (व्याप्त) थीं। (इसीलिए वे कहते थे कि-) 'आयुष्मान् न्धओ। यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ही अर्थ (सार्थक) है. यही परमार्थ है. शेष सब अनर्थ (निरर्थक) हैं।
[३] वे इतने उदार थे कि उनके घरों में दरवाजों के पीछे रहने वाली अर्गला (आगल भोगल) सदैव ऊँची खुली रहती थी। उनके घर के द्वार (याचकों के लिए) सदा खुले रहते थे। उनका अन्तःपुर ॥ तथा पर-गृह में प्रवेश लोकप्रीतिकर विश्वसनीय होता था। अथवा उनके घर में कोई सत्पुरुष आता तो उन्हें प्रीतिकर लगता था। वे शीलव्रत (शिक्षाव्रत), गुणव्रत, विरमणव्रत (अणुव्रत), प्रत्याख्यान (त्यागनियम), पौषधोपवास आदि का सम्यक् आचरण करते थे, तथा चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा, इन पर्वतिथियों में (प्रतिमास छह) प्रतिपूर्ण पौषध का सम्यक् अनुपालन करते थे। वे श्रमणनिर्ग्रन्थों को उनके कल्पानुसार प्रासुक (अचित्त) और एषणीय निर्दोष अशन, पान, खादिम, ॐ स्वादिम, वस्त्र, पात्र, कम्बल, रजोहरण, पीठ (चौकी या बाजोट), फलक (पट्टा या तख्त), शय्या, संस्तारक, औषध और भेषज आदि से प्रतिलाभित करते थे; और (अपनी शक्ति के अनुसार ग्रहण किये हुए) तपःकर्मों से अपनी आत्मा को भावित करते हुए जीवनयापन करते थे।
11. During that period of time there was a city called Tungika (ten kilometers away from Pataliputra). Description (as in Aupapatik Sutra). In the north-eastern direction (Ishan Kone) outside the city there was a garden called Pushpavatika. Description of the Chaitya as in Aupapatik Sutra).
[1. Grandeur of Shravaks of Tungika] Many Shramanopasaks (devotees of ascetics) lived in that Tungika city. They were affluent (aadhya) and self-respecting (deept). They had many grand mansions. They owned unlimited furniture, vehicles (chariots, carts etc.), and
mounts (horses, ox etc.). They had abundant wealth (coins) including gold and silver. They were proficient in a variety of methods (including 5 money lending) of expanding their wealth (ayoga), and putting them to use (in other trades) with great efficiency (prayoga). Large quantity of food was cooked in their kitchens as many people ate there. They had innumerable servants and maids and also abundant livestock including cows, buffalos and sheep. They could not be subdued by many individuals collectively.
[2. Spiritual life of shravaks] They had properly acquired the knowledge of the living (jiva) and the non-living (ajiva). They had understood merit (punya) and demerit (paap). They were proficient on the topics of inflow of karmas (ashrava), blocking of inflow of karmas
क
| द्वितीय शतक : पंचम उद्देशक
(291)
Second Shatak: Fifth Lesson
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org