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क्या कारण है ? तीसरे सूत्र में मैथुनसेवन से कितना और किस प्रकार का असंयम होता है ? यह सोदाहरण बताया गया है।
एक जीव शतपृथक्त्व जीवों का पुत्र कैसे ? - गाय आदि की योनि में गया हुआ शतपृथक्त्व (दो सौ से लेकर नौ तक) सांडों का वीर्य, वीर्य ही गिना जाता है, क्योंकि वह वीर्य बारह मुहूर्त्त तक वीर्यरूप पर्याय में रहता है। उस वीर्य पिण्ड में उत्पन्न हुआ एक जीव उन सबका (जिनका कि वीर्य गाय की योनि में गया है) पुत्र (संतान) कहलाता है । इस प्रकार एक जीव, एक ही भव में दो सौ से लेकर नौ सौ जीवों का पुत्र हो सकता है।
एक जीव के, एक ही भव में शत - सहस्रपृथक्त्व पुत्र कैसे ? - मत्स्य आदि जब मैथुनसेवन करते हैं तो एक बार के संयोग से उनके दो लाख से लेकर नौ लाख तक जीव पुत्र रूप से उत्पन्न होते हैं और जन्म लेते हैं। इससे ध्वनित होता है, संयोग काल में उत्कर्षतः नौ लाख संज्ञी जीवों की हिंसा होती है। (वृत्ति, पत्रांक १३४)
Elaboration-Number of progeny and indiscipline-In the first two of the three aforesaid aphorisms the number and cause of progenies of a living being in one life-time have been stated. The third aphorism states the indiscipline committed during sexual act giving an example.
How can a living being be progeny of two hundred to nine hundred living beings in one life-time ?-The semen of two to nine hundred bulls entering the womb of a cow is considered mixed semen because it remains potent for twelve Muhurts. The progeny of this apparent mixture of semen from numerous sources is called the progeny of all those bulls. Thus a living being can be progeny of two hundred to nine hundred living beings in one life-time.
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तुंगिका के श्रमणोपासकों का जीवन LIFE OF SHRAMANOPASAKS OF TUNGIKA
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How can one living being produce two to nine hundred thousand beings in one life time ?-Many living beings like fish produce two to 5 5 nine hundred thousand beings as a consequence of one intercourse. This also indicates that during an intercourse a maximum of nine hundred thousand sentient beings get destroyed. (Vritti, leaf 134)
१०. तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरति ।
१०. इसके पश्चात् (एकदा) श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर के गुणशील उद्यान से निकलकर बाहर जनपदों में विहार करने लगे ।
10. After that, once Shraman Bhagavan Mahavir left Gunashila garden of Rajagriha city and moved around in other populated areas.
११. (१) तेणं कालेणं तेणं समएणं तुंगिया नामं नगरी होत्था । वण्णओ । तीसे णं तुंगियाए नगरीए 5 बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए पुष्पफवतीए नामं चेइए होत्था । वण्णओ । तत्थ णं तुंगियाए नगरीए बहवे
Second Shatak: Fifth Lesson
द्वितीय शतक : पंचम उद्देशक
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