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विवेचन : विशेष स्थिति में जीव के आत्म-प्रदेशों का विस्फोट जैसी क्रिया के द्वारा अपनी सीमा से बाहर ॐ निकालने के लिए समुद्घात कहते हैं। इसके सात भेद इस प्रकार हैं
(१) वेदना-समुद्घात-वेदना से पीड़ित होने पर अनुभव योग्य वेदनीय कर्म-प्रदेशों के उदीरणा को उदय * में लाना। (२) कषाय-समुद्घात-तीव्र क्रोधादि की दशा में कुछ आत्म-प्रदेशों का बाहर निकलना। ॐ (३) मारणान्तिक-समुद्घात-मरण से पूर्व कुछ आत्म-प्रदेशों का बाहर निकलना। (४) वैक्रिय-समुद्घात卐 विक्रिया करते समय मूल शरीर को नहीं छोड़ते हुए उत्तर शरीर में जीव-प्रदेशों का प्रवेश करना। विविध रूपों ॥
का निर्माण करना। (५) तैजस्-समुद्घात-तेजोलेश्या प्रकट करते समय कुछ आत्म-प्रदेशों का बाहर निकलना। - इसका प्रयोग अनुग्रह तथा निग्रह के लिए किया जाता है, जैसे-शीतल तेजोलेश्या तथा उष्ण तेजोलेश्या।
(६) आहारक-समुद्घात-समीप में केवली के न होने पर चतुर्दशपूर्वी साधु की शंका के समाधानार्थ मस्तक से
एक श्वेत पुतले के रूप में कुछ आत्म-प्रदेशों का केवली के निकट जाना और वापस आना। यह शरीर स्फटिक म के समय श्वेत, सप्त धातुओं से रहित तथा अप्रतिहत गति वाला होता है। (७) केवलि-समुद्घात-आयुष्य के + अन्तर्मुहूर्त्त रहने पर तथा वेदनीय आदि तीन कर्मों की स्थिति बहुत अधिक होने पर उसके समीकरण करने के
लिए दण्ड, कपाट आदि के रूप में जीव-प्रदेशों का शरीर से बाहर फैलना। इसमें केवल आठ समय लगते हैं। (केवलि-समुद्घात का वर्णन देखें, अनुयोगद्वार, भाग-१, सूत्र १०८)
॥ द्वितीय शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त॥ Elaboration-Bursting forth of soul-space-points (atma-pradesh) from their normal confines is called Samudghat. Its seven types are briefly described as follows
(1) Vedana-samudghat-Bursting forth of some soul-space-points due to suffering of pain. (2) Kashaya-samudghat-Bursting forth of some soul• space-points due to intense anger and other passions. (3) Maranantik. samudghat-Bursting forth of some soul-space-points just before death.
(4) Vaikriya-samudghat-Controlled bursting forth of some soul-space4 points without completely abandoning the original body during the process 41 of creating secondary transmuted body (vaikriya sharira). (5) Taijas.
samudghat-Bursting forth of some soul-space-points during launching fire-power (tejoleshya). (6) Aharak-samudghat-Bursting forth of some soul-space-points in the form of a white puppet, which goes to an omniscient and returns after getting answers. This is done by a Chaturdashpurvi ascetic (a scholar of fourteen subtle canons) to clear his doubts. (7) Kevali-samudghat-Bursting forth and withdrawal of soulspace-points after acquiring shapes of a rod, a slab etc. in order to balance the three excessive residual karmas including Vedaniya (karma responsible 4 for mundane experience of pain and pleasure). This is done by a Kevali when one Antarmuhurt of his life-span is left and the duration of karmas still to be experienced is more. This process takes eight Samayas to conclude. (For details see Illustrated Anuyogadvar Sutra, Part-1, aphorism 108)
• END OF THE SECOND LESSON OF THE SECOND SHATAK •
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भगवतीसूत्र (१)
(276)
Bhagavati Sutra (1)
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