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________________ )) ))) )))) )) ) सयमेव पंच महव्वयाइं आरुहेइ, आरुहित्ता समणे य समणीओ य खामेइ, तहारूवेहिं थेरेहिं कडाऽऽईहिं 5 ॐ सद्धिं विपुलं पव्वयं सणियं सणियं दुरूहेइ, दुरूहित्ता मेघघणसन्निगासं देवसन्निवायं पुढविसिलावट्टयं म पडिलेहेइ, पडिलेहित्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहित्ता दम्भसंथारयं संथरेइ, संथेरित्ता पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसण्णे करयलपरिरग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी नमोऽत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं, नमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव ॐ संपाविउकामस्स, वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगयं, पासउ मे भयवं तत्थगए इहगयं ति कटु वंदइ ॐ नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-"पुट्विं पि मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सब्बे # पाणातिवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए जाव मिच्छादसणसल्ले पच्चक्खाए जावज्जीवाए, इयाणिं वि य णं ॐ समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जावज्जीवाए जाव मिच्छादसणसल्लं पच्चक्खामि। एवं सव्वं असणं पाणं खाइमं साइमं चउविहं पि आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए। जं पि य 5 इमं सरीरं इठं कंतं पियं जाव फुसंतु त्ति कट्ट एवं पि णं चरिमेहिं उस्सास-नीसासेहिं वोसिरामि" त्ति कट्ट संलेहणा-झूसणाझूसिए भत्त-पाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरइ। ५०. तदनन्तर स्कन्दक अनगार श्रमण भगवान महावीर की आज्ञा प्राप्त हो जाने पर अत्यन्त हर्षित, संतुष्ट यावत् प्रफुल्ल हृदय हुए। फिर खड़े होकर श्रमण भगवान महावीर को तीन बार दाहिनी ओर से ऊ प्रारम्भ कर प्रदक्षिणा की और वन्दना-नमस्कार करके स्वयमेव पाँच महाव्रतों का आरोपण किया। फिर श्रमण-श्रमणियों से क्षमायाचना की और तथारूप योग्य कतादि स्थविरों के साथ शनैः-शनैः विपलाचल 卐 पर चढ़े। वहाँ मेघ-समह के समान काले, देवों के उतरने योग्य स्थानरूप एक पृथ्वीशिलापट्ट की प्रतिलेखना की तथा उच्चार-प्रस्रवणादि परिष्ठापनभूमि की प्रतिलेखना की। ऐसा करके उस पृथ्वीशिलापट्ट पर डाभ का संथारा बिछाकर, पूर्व दिशा की ओर मुख करके, पर्यंकासन से बैठकर, दसों नख सहित दोनों के हाथों को मिलाकर मस्तक पर रखकर, दोनों हाथ जोड़कर इस प्रकार बोले ___अरिहन्त भगवन्तों को, यावत् जो मोक्ष को प्राप्त हो चुके हैं, उन्हें नमस्कार हो तथा अविचल शाश्वत ॐ सिद्ध स्थान को प्राप्त करने की इच्छा वाले श्रमण भगवान महावीर स्वामी को नमस्कार हो। (अर्थात् ॐ नमोत्थुणं' के पाठ का दो बार उच्चारण किया।) तत्पश्चात् कहा-'वहाँ रहे हुए भगवान महावीर स्वामी ॥ को यहाँ रहा हुआ मैं वन्दना करता हूँ। वहाँ विराजमान श्रमण भगवान महावीर स्वामी यहाँ पर रहे हुए 5 ऊ मुझको देखें। ऐसा कहकर भगवान को वन्दना-नमस्कार किया। वन्दना-नमस्कार करके वे इस प्रकार 卐 बोले- 'मैंने पहले भी श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास यावज्जीवन के लिए सर्व प्राणातिपात का त्याग किया था, यावत् मिथ्यादर्शनशल्य तक अठारह ही पापों का त्याग किया था। इस समय भी श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास यावज्जीवन के लिए सर्व प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य तक अठारह ही + पापों का त्याग करता हूँ और यावज्जीवन के लिए अशन, पान, खादिम और स्वादिम, इन चारों प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ। तथा यह मेरा शरीर, जोकि मुझे इष्ट, कान्त, प्रिय है, यावत् जिसकी मैंने बाधा-पीड़ा, रोग, आतंक, परीषह और उपसर्ग आदि से रक्षा की है, ऐसे शरीर का भी अन्तिम क श्वासोच्छ्वास तक व्युत्सर्ग (ममत्व-विसर्जन) करता हूँ, यों कहकर संलेखना संथारा करके, भक्त-पान का सर्वथा त्याग करके पादपोपगमन अनशन करके मृत्यु की आकांक्षा न करते हुए विचरण करने लगे। )))) ) 卐55 ) क))) Bhagavati Sutra (1) भगवतीसूत्र (१) (270) 85555555555)))))))) )) ) )))) ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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